जयपुर से मनीष गोधा की रिपोर्ट
राजस्थान कांग्रेस के असंतुष्ट नेता सचिन पायलट के पार्टी और अपनी सरकार के प्रति बदले रुख ने भाजपा के लिए गुर्जर वोटों की चिंता बढ़ा दी है। आमतौर पर भाजपा का परम्परागत वोट बैंक रहा गुर्जर समुदाय पिछले चुनाव में पायलट के चलते ही पूरी तरह से कांग्रेस के साथ चला गया था, लेकिन हाल ही तक पायलट और कांग्रेस के बीच चलती आ रही खींचतान को देखते हुए भाजपा को उम्मीद थी कि गुर्जर वोट बैंक फिर से पार्टी के पास लौट आएगा। कांग्रेस में अब परिस्थितियां बदल रही हैं और इस बदलाव ने ही भाजपा को चिंता में डाल दिया है। इस चिंता का असर ही है कि पार्टी अलग-अलग तरह से गुर्जर समुदाय को फिर से अपने पक्ष में करने के प्रयासों में जुट गई है। यही कारण है कि अब फिर पार्टी के 40 बडे़ नेता दो दिन से सवाई माधोपुर में हैं और विजय संकल्प बैठक कर रहे हैं। इसमें चुनावी रणनीति को अंतिम रूप दिया जा रहा है। सवाई माधोपुर गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र ही है।
राजस्थान की जाति आधारित चुनावी राजनीति में गुर्जर एक बड़ा वोट बैंक है। करीब नौ फीसदी आबादी के साथ गुर्जर समुदाय 12 जिलों की लगभग 35-40 विधानसभा सीटों और लोकसभा की 25 में से करीब 11 सीटों पर असर डालता है। ऐसे में समझा जा सकता है कि गुर्जर समुदाय कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए कितनी अहमियत रखता है। सचिन पायलट जैसे बड़े कद के नेता के चलते कांग्रेस निश्चित रूप गुर्जर वोट बैंक के मामले में भाजपा के मुकाबले आगे नजर आ रही है। भाजपा के पास पायलट जैसे कद का कोई गुर्जर नेता नहीं है। राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन चलाने वाले कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला हालांकि पार्टी से जुड़े हुए थे, लेकिन अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। उनके बेटे विजय बैंसला भाजपा ने भी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ली थी और हाल में भरतपुर में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की सभा में उन्हें मंच पर बैठाया भी गया था, लेकिन ना वे कर्नल बैंसला जैसा कद रखते हैं और ना ही पार्टी में उनकी बहुत ज्यादा सक्रियता नजर आ रही है। ऐसे में राजस्थान भाजपा को गुर्जर समुदाय के एक बड़े करिश्माई नेता की जरूरत महसूस हो रही है।
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता स्वर्णिम चतुर्वेदी कहते हैं कि पार्टी पूरी एकजुटता से चुनाव लड़ने जा रही है और जिस तरह से पिछली बार गुर्जर समुदाय ने भाजपा को नकारा था, वैसा ही इस बार भी होगा, क्योंकि इस बार सचिन पायलट जैसे नेता ही नहीं, बल्कि हमारी सरकार के काम भी हमारी सरकार रिपीट कराएंगे।
हालांकि कुछ उम्मीद भी है
इस स्थिति के बावजूद BJP को कुछ उम्मीद भी है। माना जा रहा है कि सचिन पायलट का रुख भले ही कांग्रेस के लिए बदल गया हो, लेकिन पायलट के साथ कांग्रेस ने जो कुछ साढे़ चार साल में किया, उसे गुर्जर समुदाय भूला नहीं है। यही कारण है कि अब समुदाय कांग्रेस के साथ पूरी तरह से नहीं जुड़ेगा। गुर्जर आरक्षण आंदोलन में राजस्थान गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के प्रवक्ता और महामंत्री रहे और अभी भाजपा से जुडे़ शैलेन्द्र धाभाई कहते हैं कि पिछली बार पूरा समाज सचिन पायलट के नाम पर कांग्रेस से जुड़ा था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। समाज ने कांग्रेस पर भरोसा कर के देख लिया, लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगी। ऐसे में इस बार 70 से 80 प्रतिशत वोट वापस भाजपा से जुड़ेगा और पिछली बार जैसी स्थिति नहीं रहेगी। वैसे भी भाजपा अलग-अलग स्तर पर समुदाय के लोगों को प्रतिनिधित्व दे रही है और इसका असर नजर आएगा।
भाजपा ने यह की कोशिशें
गुर्जर समुदाय को पार्टी से फिर से जोड़ने के लिए भाजपा अलग-अलग तरह से प्रयास कर रही है और कोशिश यही है कि पिछली बार जैसी स्थिति बनी, वैसी कम से कम इस बार ना बने।
पार्टी ने यह की है कोशिशें
- इस वर्ष जनवरी में पीएम नरेन्द्र मोदी भीलवाड़ा में गुर्जर समुदाय के आराध्य माने जाने वाले भगवान देवनारायण के मंदिर के एक बड़े कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए। यह पीएम की पूरी तरह से धार्मिक यात्रा थी।
इन जिलों में है गुर्जर समुदाय का प्रभाव
राजस्थान के 12 जिलों में गुर्जर समाज का प्रभाव देखने को मिलता है। भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, जयपुर, टोंक, दौसा, कोटा, भीलवाड़ा, बूंदी, अजमेर और झुंझुनू जिलों को गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है।
विधानसभा की यह सीटें गुर्जर बाहुल्य मानी जाती हैं
नसीराबाद, किशनगढ़, पुष्कर, थानागाजी, बानसूर, बसेड़ी (एससी), बाड़ी, टोडाभीम व सपोटरा, नगर, कामा, बयाना, कोटपूतली, विराटनगर, जमवारामगढ़, दूदू, निवाई, टोंक,मालपुरा, देवली उनियारा, सवाईमाधोपुर, खंडार, गंगापुर, केशोरायपाटन (एससी), पीपल्दा, हिंडौली, खानपुर, मनोहरथाना दौसा, बांदीकुई, महवा, सिकराय, लालसोट, खेतड़ी, आसींद, जहाजपुर, मांडल, सहाड़ा, शाहपुरा ( एससी),
पिछले चुनाव में भाजपा का एक भी गुर्जर प्रत्याशी नहीं जीता
पिछले चुनाव में गुर्जर समुदाय सचिन पायलट के सीएम बनने को लेकर इस हद तक आश्वस्त था कि समुदाय ने अपने वोट बंटने ही नहीं दिया। स्थिति यह थी कि गुर्जर समाज से 8 विधायक जीत कर सदन में पहुंचे और इनमें से सात कांग्रेस हैं और एक बसपा के जोगेन्द्र सिंह अवाना है जो अब कांग्रेस में ही शामिल हो चुकेे हैं। वहीं बीजेपी ने गुर्जर समुदाय के नौ लोगों को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन एक भी जीत कर नहीं आ पाया।
लोकसभा की सीटें भी प्रभावित करता है समुदाय
राजस्थान में बीजेपी अपनी रणनीति सिर्फ विधानसभा चुनाव ही नहीं बल्कि लोकसभा चुनाव की दृष्टि से भी बना रही है। यह सही है कि पिछली बार विधानसभा चुनाव में पायलट के नाम पर भले ही गुर्जर कांग्रेस के साथ गए, लेकिन लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर उन्होंने भाजपा को ही वोट दिया और पार्टी ने सभी 25 सीटें जीती। लेकिन इस बार स्थितियां कुछ अलग दिख रही हैं। गुर्जर समुदाय प्रदेश की कुल 25 में से करीब 11 लोकसभा सीटों को प्रभावित करते हैं। इनमें अजमेर, भीलवाड़ा, भरतपुर, जयपुर ग्रामीण, टोंक-सवाई माधोपुर, कोटा, बारां-झालावाड़, धौलपुर-करौली, दौसा, झुंझुनू व अलवर संसदीय सीट शामिल हैं।