Jabalpur. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि जज कोई स्टेनोग्राफर नहीं होता जो हर कही गई बात को अपने आदेश पत्र में दर्ज करे। जो जरूरी तथ्य होते हैं सिर्फ वे ही आदेश पत्र में दर्ज किए जाते हैं। इस टिप्पणी के साथ चीफ जस्टिस रवि मलिमठ की डिवीजन बेंच ने एडीशनल डिस्ट्रिक एंड सेशन जज को अनिवार्य सेवानिवृत्ति के रूप में दिए दंड को रद्द कर दिया है। और उन पर लगाए गए सभी आरोपों को खारिज कर दिया।
एडीजे के सी रजवानी की ओर से दायर याचिका में कहा गया थ कि उन पर गुना में
पदस्थ रहने के दौरान पैसे लेकर जमानत देने का आरोप लगा था। इसके अलावा फैसला और सुनवाई करने में देरी के भी आरोप लगे थे। जिस पर विभागीय जांच की गई और साल 2006 में उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि याचिकाकर्ता को 4 महीने के भीतर सभी वेतन संबंधी लाभ का भुगतान किया जाए।