भोपाल. कुर्सी और पैसे के लिए नेताओं, सांसद और विधायकों के पार्टी बदलने की खबरें तो आपने बहुत देखी-सुनी होंगी लेकिन क्या कोई खदान या जमीन भी ऐसा कर सकती है। आप कहेंगे असंभव। लेकिन प्रदेश में एक खास खदान कारोबारी के रसूख और सत्ता की मेहरबानी के चलते यह चमत्कार भी हुआ है। मामला जबलपुर जिले में लोहे की दो खदानों से जुड़ा है। आप यह जानकार चौंक जाएंगे कि एक विधायक और पूर्व मंत्री के परिवार के स्वामित्व वाली इन खास खदानों की जमीन का इस्तेमाल उनकी पार्टी के साथ बदलता रहा है। यानी जब वे सत्ता के साथ रहे तो जिस जमीन पर उनकी खदानें हैं वो संरक्षित वन भूमि से सामान्य राजस्व भूमि घोषित कर दी गई। और जब सत्ता के साथ उनके समीकरण नहीं बैठे तो लौह अयस्क के रूप में सोना उगलने वाली उनकी खदानों की जमीन का दर्जा राजस्व भूमि से बदलकर फिर संरक्षित वन भूमि हो गया। नियमानुसार जिस पर खनन करना गैर-कानूनी है।
दोनों खदानें संजय पाठक की मां के नाम पर
अब आप यह जरूर जानना चाहेंगे कि आखिर वो खास विधायक और पूर्व मंत्री कौन हैं, जिनकी खातिर प्रदेश के वन विभाग की आपत्ति तो दूर केंद्र सरकार की साधिकार समिति और सुप्रीम कोर्ट के आदेश-निर्देश को भी दरकिनार कर जमीन का उपयोग बदला गया। तो जान लीजिए ये विधायक और पूर्व मंत्री वो हैं अपनी राजनीति के लिए कम और खनन कारोबार के लिए ज्यादा मशहूर हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री संजय पाठक के परिजन की जबलपुर जिले के ग्राम अगरिया और दुबियारा में स्थित लौह अयस्क की खदानों की। वही संजय पाठक, जिनके पिता सत्येंद्र पाठक कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रहे हैं। शुरुआत से ही विवाद के केंद्र में रही निर्मला मिनरल्स ये दोनों खदानें संजय की मां श्रीमती निर्मला पाठक के नाम पर हैं।
18 साल पुराना विवाद
जबलपुर की सिहोरा तहसील में स्थित लौह अयस्क की इन खदानों के विवाद की कहानी शुरू होती है 28 जून 2003 से। तब कांग्रेस की तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने पाठक परिवार को फायदा पहुंचाने के लिए 28 जून 2003 में वन विभाग की आपत्ति को दरकिनार कर संरक्षित वन भूमि को राजस्व भूमि में तब्दील कर दिया था। वन विभाग ने खदानों की जमीन संरक्षित वन क्षेत्र में होने के कारण खनन पर रोक लगा दी थी।लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में गठित केंद्रीय साधिकार समिति के प्रतिवेदन (21.07.2010) के आधार पर वन विभाग ने 26 नवंबर 2011 को संबंधित दोनों खदानों की जमीन को वनभूमि बताया। इसके बाद प्रदेश में बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 12 अक्टूबर 2012 को फिर से इस जमीन को राजस्व से वन भूमि में बदल दिया।
नुकसान हुआ तो संजय ने बीजेपी का दामन थामा
बीजेपी सरकार के फैसले से जमीनों पर खनन का काम रोक दिया गया। तब संजय पाठक कांग्रेस विधायक थे। खदानें बंद होने से करोड़ों का नुकसान होने पर वे मार्च 2014 में कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। सत्ता के साथ आते ही संजय पाठक परिवार की बंद पड़ी खदानों को खोलने का रास्ता भी खुल गया। संजय पाठक पर मेहरबान बीजेपी सरकार ने 24 सितंबर 2015 को फिर से उनकी खदानों वाली जमीन को वन भूमि से राजस्व भूमि में तब्दील कर दिया। मेसर्स निर्मला मिनरल्स की अगरिया और दुबियारा की खदानों में फिर से कीमती लौह अयस्क का खनन शुरू हो गया।
सत्ता बदलते ही संजय पर संकट के बादल
करीब 3 साल बाद नवंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सत्ता का समीकरण बदला और कांग्रेस की कमलनाथ सरकार सत्ता में आ गई। इसके साथ ही पाठक परिवार की खदानों पर संकट के बादल मंडराने लगे। कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लंबित संजय पाठक के जमीन मामले में मजबूती से पैरवी की। सरकार ने अच्छे से पैरवी की। नतीजा मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट मई 2019 में एक अंतरित आदेश जारी कर उक्त विवादित जमीन पर किसी भी तरह को खनन पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने जबलपुर कलेक्टर और मुख्य वन संरक्षक को इस आदेश का तत्काल पालन करने को कहा।
कलेक्टर का खदानों को बंद करने का आदेश
जबलपुर कलेक्टर ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अमल करते हुए 18 जून 2019 को सिहोरा तहसील के ग्राम अगरिया खसरा नंबर 1093 और दुबियारा खसरा नंबर 628/1, पर मेसर्स निर्मला मिनरल्स की खदानों को बन्द करने के आदेश जारी कर दिए। कलेक्टर के इस आदेश के विरोध में पाठक की खनन कंपनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश उन पर लागू नहीं होता। इस पर कलेक्टर ने 23 अगस्त 2019 को खनन पर रोक से अंतरिम राहत देते हुए निर्मला मिनरल्स को 6 माह में जमीन के दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा। लेकिन निर्मला मिनरल्स तय समयावधि में विवादित जमीन के दस्तावेज पेश नहीं कर पाई। जबलपुर कलेक्टर ने 4 मार्च 2020 को फिर से खदानों को सील कर दिया।
कमिश्नर ने कलेक्टर के आदेश रद्द किए
निर्मला मिनरल्स ने इस मामले में जबलपुर संभाग के कमिश्नर के यहां अपील की। इस पर तत्कालीन कमिश्नर रविन्द्र मिश्रा ने 18 अप्रैल 2020 को खनन कंपनी की अपील मान्य करते हुए जबलपुर कलेक्टर के सभी आदेश निरस्त कर दिए। यहां गौर करने वाली बात यह है कि यह वह समय था जब कमलनाथ सरकार के 28 विधायक कांग्रेस का दामन छोड़ चुके थे, यानी कांग्रेस सरकार का गिरना तय हो गया था। तत्कालीन जबलपुर कमिश्नर मिश्रा ने प्रदेश में सत्ता के बदलते समीकरणों का रुख देखते हुए भाजपा विधायक के पिरवार की कंपनी के पक्ष में फैसला सुना दिया। दरअसल 18 मार्च 2020 को मिश्रा ने निर्मला मिनरल्स की अपील मंजूरी की और 19 मार्च को कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कमलनाथ का इस्तीफा हो गया।
वन विभाग की नई अपील तैयार
वन विभाग के अधिकारियों का आरोप है कि जबलपुर कमिश्नर ने निर्मला मिनरल्स को फायदा पहुंचाने के लिए एकतरफा सुनवाई कर निर्णय सुनाया है। उन्होंने इस मामले में जबलपुर के कलेक्टर और चीफ कंजरवेटर फारेस्ट का पक्ष सुनना मुनासिब नहीं समझा। उन्होंने निर्मला मिनरल्स के पक्ष में फैसला सुनाने से पहले न तो कलेक्टर को पक्षकार बनाया और न ही वन विभाग के अफसरों को। इतना ही नहीं उन्होंने जबलपुर के कलेक्टर कार्यालय में मौजूद निर्मला मिनरल्स के वन भूमि पर खनन किए जाने वाले दस्तावेजों को भी नहीं देखा।वन विभाग ने जबलपुर संभाग के तत्कालीन कमिश्नर रविंद्र मिश्रा के इस आदेश को न्याय के नैसर्गिक सिद्धांतों के खिलाफ करार दिया। वन विभाग इस मामले में अब जबलपुर कमिश्नर के सामने नए सिरे से अपील करने की तैयारी कर रहा है।
20 साल में खदानों से हजारों करोड़ का खनन
सूत्रों के मुताबिक, लौह अयस्क की इन खदानों से अभी सालाना 6 लाख मीट्रिक टन खनन किया जा रहा है। इससे पूर्व खदानों से सालाना 2 लाख मीट्रिक टन खनन किए जाने की अनुमति थी। यदि यह माना जाए कि यहां हर साल औसतन 2 लाख मीट्रिक टन लौह अयस्क का ही खनन किया गया तो पिछले 20 सालों में करीब 40 लाख मीट्रिक टन खनन किया जा चुका है। बाजार दर के अनुसार, लौह अयस्क की कीमत 1500 रुपए प्रति टन है। इस लिहाज से इन खदानों से पिछले 20 साल में ही हजारों करोड़ रुपए का खनन किया जा चुका है।