संजय गुप्ता @INDORE
इंदौर में विधानसभा एक बीजेपी के प्रत्याशी और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का मिशन जीत के साथ ही एक नंबर जीत का टारगेट रखा है। इसके लिए हर कार्यकर्ता को कैलाश विजयवर्गीय नारा दिया गया और सभी को कहा गया है कि बड़ी जीत चाहिए, इंदौर में जीत एक नंबर होना चाहिए। अब इंदौर में नंबर जीत का मतलब है वोट के आधार पर सबसे बड़ी जीत हो। ऐसा तभी होगा जब विधानसभा एक के 3.63 लाख मतदाताओं में से 1.75 लाख और इससे ज्यादा वोट उनके खाते में जाएं। वहीं बड़ी जीत के रिकार्ड में उनके लिए सबसे बड़ी बाधा तो उनके खास मित्र रमेश मेंदोला ही हैं, दूसरी बाधा विधानसभा चार की मालिनी गौड़ हैं। यह दोनों ही है जो इंदौर जिले की सभी नौ विधानसभा सीटों पर सबसे बड़ी जीत दर्ज करते हैं। मेंदोला की जीत तो वोटों के लिहाज से प्रदेश में टॉप फाइव में होती है।
पहले देखते हैं विजयवर्गीय के रिकार्ड-
कैलाश विजयर्गीय साल 1990 से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं, वह लगातार 6 चुनाव लड़े और जीते। इस दौरान उनकी जीत का रिकार्ड इस तरह रहा-
1990 में- विधानसभा चार से इकबाल खान को 25602 वोट से हराया
1993 में- विधानसभा दो में पंडित कृपाशंकर शुक्ला को 21062 वोट से हराया
1998 में- विधानसभा दो में रेखा गांधी को 20273 वोट से हराया
2003 में- विधानसभा दो में अजय राठौर को 35911 वोट से हराया
2008 में- विधानसभा महू में अंतर सिंह दरबार को 9791 वोट से हराया
2013 में- विधानसभा महू में अंतर सिंह दरबार को इस बार 12216 वोट से हराया।
विजयवर्गीय की सबसे बड़ी और छोटी जीत-
उनकी सबसे बड़ी जीत वोटों के लिहाज से साल 2003 में हुई जब कांग्रेस के दस साल के शासन को हराकर बीजेपी उमा भारती के नेतृत्व में सत्ता मे आई थी, तब यह जीत 35911 वोट की हुई थी। वहीं सबसे छोटी जीत साल 2008 में हुई जब वह महू गए थे और अतंरसिंह दरबार को 9791 वोट से हराया था।
6 चुनाव में दो बार जिले में सबसे बड़ी जीत हासिल कर सके-
विजयवर्गीय इन छह चुनावों में दो बार जिले में सबसे बड़ी जीत हासिल कर सके हैं। साल 1990 में जिले में विधानसभा चार में इकबाल खान से उनकी 25602 वोट की जीत सबसे बड़ी जीत थी, तब दूसरे नंबर पर जिले में कांग्रेस के अशोक शुक्ला थे, वह विधानसभा पांच से 18472 वोट से जीते थे। इसके बाद साल 1998 में विधानसभा दो में रेखा गांधी से उनकी 20273 वोट की जीत सबसे बड़ी जीत थी, तब दूसरे नंबर लक्ष्मण सिंह गौड़ थे, उनकी विधानसभा चार में जीत 15977 वोट से हुई थी।
लक्ष्मण सिंह गौड़ के 3 चुनाव में दो बार बड़ी जीत के रिकार्ड
स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह गौड़ भी अपने समय में सबसे बड़ी जीत के लिए पहचान रखते थे। साल 1993, 1998 और 2003 में वह लगातार तीन चुनाव जीते और इस दौरान साल 1993 और 2003 की दो जीत उनकी जिले में सबसे बड़ी जीत थी। साल 1993 में उन्होंने पहले चुनाव में ही उजागर सिंह चड्ढा को 28109 वोट से हराया था। वहीं साल 2003 के चुनाव में उन्होंने ललित जैन को 45625 वोट से चुनाव हराया था।
मेंदोला से शुरु हुए जिले में 50 हजार से अधिक जीत के रिकार्ड-
लेकिन यह सभी रिकार्ड रमेश मेंदोला के चुनाव मैदान में उतरते ही धरे रह गए। रमेश मेंदोला साल 2008, 2013 और 2018 तीन चुनाव में लड़कर नए-नए रिकार्ड बना चुके। जिले में पहली 50 हजार वोट से अधिक की जीत और किसी के नहीं बल्कि मेंदोला के नाम पर हुई। साल 2008 में उन्होंने विधानसभा दो से सुरेश सेठ को 39937 वोट से हराया, फिर 2013 में छोटू शुक्ला को 91107 रिकार्ड वोट से हराया और साल 2018 में मोहन सेंगर को 71 हजार से अधिक वोट से हराया।
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विधानसभा चार से मालिनी गौड़ के रिकार्ड भी कम नहीं-
वहीं वोटों से जीत के मामले में विधानसभा चार से मालिनी गौड़ के रिकार्ड भी शानदार है। साल 2008 के चुनाव में उन्होंने गोविंद मंधानी को 28043 वोट से हराया, साल 2013 में यह सुरेश मिंडा को 33823 वोट से हराया और साल 2018 के चुनाव में सुरजीत सिंह चड्ढा को 43090 वोट से मात दी।
बड़ी जीत के लिए विजयवर्गीय का इस तरह चाहिए 1.75 लाख वोट-
इंदौर विधानसभा एक में अभी 3.63 लाख मतदाता है। बीते चुनाव में यहां 3.29 लाख मतदाता थे और 69 फीसदी यानि 2.28 लाख ने वोट डाले थे। बीजेपी के सुदर्शन गुप्ता को 1.05 लाख (46.66 फीसदी) और कांग्रेस के संजय शुक्ला को 1.13 लाख (50.24 फीसदी) वोट मिले। कांग्रेस 8163 वोट से चुनाव जीती थी। यदि इस बार चुनाव में 3.63 लाख मतदाताओं में 70 फीसदी वोटिंग होती है तो 2.54 लाख वोट होंगे और एक लाख जीत के मिशन के हिसाब से विजयवर्गीय को करीब 1.75 लाख वोट चाहिए। यानि डले हुए 70 फीसदी वोट का 68 फीसदी हिस्सा। वहीं कांग्रेस को 75 हजार वोट के करीब समेटना होगा, तब जाकर एक लाख की जीत का लक्ष्य पूरा होगा।