Bilaspur.कोयला घोटाला और अवैध वसूली मामले में हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उप सचिव ( निलंबित ) सौम्या चौरसिया की ज़मानत याचिका ख़ारिज कर दी है।हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले के फ़ैसले में बेहद कड़ी टिप्पणियाँ की हैं। उच्च न्यायालय ने आदेश में लिखा है कि, प्रकरण की कार्यप्रणाली से पता चलता है कि, आवेदिका ( सौम्या चौरसिया ) केवल एक पक्ष या कि बस आवेदिका नहीं है बल्कि अवैध धन की वसूली और अपराध को आगे बढ़ाने में सक्रिय रुप से शामिल रही है।हाईकोर्ट ने ज़मानत याचिका ख़ारिज करते हुए यह भी माना है कि, प्रकरण में धारा 2(U) और धारा 3 पीएमएलए एक्ट को मज़बूत करने वाले पर्याप्त तथ्य हैं। जस्टिस पी सैम कोशी ने फ़ैसले में लिखा है कि बिना पक्षपाती उचित तरीक़े से आर्थिक अपराध से पर्दा हटाने के लिए लंबे समय तक जेल में रखा जाना चाहिए जिससे ना केवल सौम्या चौरसिया बल्कि अन्य अभियुक्तों के संबंध में विवेचना हो सके।
आठ पन्नों और 21 बिंदुओं में जारी है ज़मानत खारिजी का आदेश
जस्टिस पी सैम कोशी का फ़ैसला आठ पन्नों का है। इसमें 21 बिंदुओं में फ़ैसला लिखा गया है। सौम्या चौरसिया की ज़मानत याचिका पर फ़ैसला सत्रह अप्रैल से रिज़र्व था जिसे 23 जून को जस्टिस पी सैमकोशी ने सार्वजनिक किया है। विस्तृत आदेश के पूर्व डायस से जस्टिस पी सैम कोशी ने संबंधित पक्षों के अधिवक्ताओं की उपस्थिति में फ़ैसला सार्वजनिक करते हुए कहा था
“सौम्या चौरसिया की ज़मानत याचिका ख़ारिज की जाती है”
क्या कहा है हाईकोर्ट ने
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में ना केवल प्रकरण को बेहद गंभीर माना है बल्कि यह भी माना है कि आवेदिका ( सौम्या चौरसिया) के विरुद्ध अभियोजन पक्ष के पास पर्याप्त साक्ष्य हैं जिससे कि मनी लॉंड्रिंग एक्ट प्रमाणित होता है। छत्तीसगढ़ की शीर्ष अदालत ने फ़ैसले में कहा है
- अपराध में सीधे या परोक्ष रूप से शामिल होने वाले लोगों की संख्या और इनमें से कई लोगों के ब्यूरोक्रेसी का अंग रहने के कारण और अपराध की कार्रवाई की अवधि लंबे समय तक होने से अपराध की गंभीरता बढ़ जाती है। जरूरी है कि अपराध की गंभीरता और महत्व को देखा जाए। आर्थिक अपराध न केवल राज्य के भीतर, बल्कि देश में भी बढ़ रहे हैं। वर्ष 2002 में (पीएमएलए) कानून लागू करने के पीछे भी इरादा और उद्देश्य यही है कि इस तरह के मनी लॉन्ड्रिंग के कार्यों को रोका जाए। जब ऐसे कार्यों को उनके शक्ति और पद के प्रभाव वाले जनसेवकों द्वारा किया जाता है, तो अपराध की गंभीरता बढ़ती है। यदि इस तरह के अपराधों के खिलाफ लोग नियमानुसार जमानत पर छोड़ दिए जाते हैं, तो समाज का विश्वास व्यवस्था में हिल सकता है और इसका वर्तमान पीढ़ी की मानसिकता पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
-आर्थिक अपराध , कॉर्पोरेट क्षेत्र के विशेषज्ञ, वित्त प्रबंधक, व्यापारियों, संगठित अपराध सिंडिकेट और नियमित तौर पर नियुक्त सरकारी सेवक आदि द्वारा किये जा रहे हैं।इन अपराधियों द्वारा सिस्टम में मौजूद लूपहोल्स को समझकर और आधुनिक तकनीक का उपयोग करके अपने अधिकार का प्रयोग कर व्यावसायिक अभ्यास करते हुए धन का लाभ उठाते हैं जिससे समाज के क़ानूनी संचालन को खतरा उत्पन्न होता है ।
-यह एक ऐसा कृत्य है जो शांत, योजनाबद्ध और धीरे धीरे विकसित किया गया लगता है, लेकिन यह सार्वजनिक धन और समाज के कल्याण पर हमला बन जाता है। आर्थिक अपराध में दोषी सिर्फ अपने व्यापारिक लाभ की चिंता करते हैं, जो नागरिकों के नुकसान के बदले में होती है। समाज में धन भी एक सामाजिक शासन का समानांतर बन गया है, चाहे यह समाज के आर्थिक दुर्भाग्य की कीमत पर ही क्यों न चले।
- सफेदपोश अपराध में अभियुक्त अक्सर प्रभावी व्यक्ति होता है जिसके पास स्टेटस, पद, प्रतिष्ठा और साधन होते हैं जिससे यह संभावित होता है कि वह जांच और मुकदमे पर असर डाल सके। वह गवाहों को अपने पक्ष में करने और सबूतों को बदलने की स्थिति में होता है। सफेदपोश अपराध समाज में और खासकर अर्थव्यवस्था में दीर्घकालिक प्रभाव डालता है।
- अभियोजन द्वारा पेश दस्तावेजो से यह स्पष्ट है कि प्रकरण के आरोपीगणों के साथ आवेदक की मजबूत साठगांठ है।अभियोजन के द्वारा संकलित दस्तावेजी साक्ष्य और डिजिटल साक्ष्य हस्तलिखित डायरी ,मोबाईल, लैपटॉप इत्यादी से बहुत सारे कैश लेनदेन और अवैधानिक लेनदेन सूर्यकांत तिवारी द्वारा सौम्या चौरसिया के निर्देश पर किया गया। सौम्या चौरसिया जो एक लोकसेवक है और जिसके द्वारा सूर्यकांत और मनीष उपाध्याय को फ्रंट मैन की तरह इस्तेमाल किया गया।
- रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य से यह पता चलता है कि 170 करोड़ रुपये के लगभग की सम्पत्ति अटेच की गई है और दिनाँक 9.12.22 और 29.12.22 के अटेचमेंट आदेश के अनुसार बड़ा हिस्सा आवेदिका का है।
-प्रकरण की कार्यप्रणाली से यह स्पष्ट है कि न केवल आवेदिका एक पार्टी है बल्कि अवैध धन की वसूली और अपराध को अग्रसर करने में सक्रिय रूप से शामिल रही है।प्रकरण में धारा 2(1)(u) और धारा 3 पीएमएलए एक्ट को पुष्ट करने पर्याप्त तथ्य विद्यमान है।
- ऐसे परिस्थितियों में, निष्पक्षता और न्याय हेतु अलग तरीके से कार्यवाही करने की ज़रूरत होती है ताकि आर्थिक अपराधों के पर्दे उठाये जा सकें। इसका एक तरीका है कि आरोपित पक्षों को लम्बे समय तक कस्टडी में रखा जाए, ताकि न सिर्फ आवेदक बल्कि अपराध में शामिल अन्य लोगों की जांच में न्यूनतम बाधा और अधिकतम कुशलता हो। इसके लिए, बेल की अनुमति ऐसे ही नहीं दी जानी चाहिए जैसा कि नियमित अपराधों के मामले में स्वीकार किया जाता है।
- मामले के सभी उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, और अपराध की गंभीरता को देखते हुए, यह कोर्ट अभी वर्तमान आवेदक को जमानत नहीं दे रहा है। इस प्रकार, जमानत आवेदन अस्वीकार कर दिया जाता है।
भूपेश सरकार की सबसे प्रभावशाली महिला अधिकारी है सौम्या
सौम्या चौरसिया भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री काल वाली इस सरकार में सबसे प्रभावशाली महिला अधिकारी रही हैं। सौम्या चौरसिया राज्य प्रशासनिक सेवा की अधिकारी हैं और दो दिसंबर को जबकि वे ईडी द्वारा गिरफ़्तार की गईं तब सीएम सचिवालय में उप सचिव थी। सौम्या चौरसिया बेहद प्रभावशाली महिला अधिकारी रही हैं। उनका औरा ऐसा था कि, कोई भी अधिकारी फिर वह किसी विभाग का हो उनकी बात को ‘ना’ कहने की सोचता नहीं था। श्रीमती सौम्या चौरसिया की बात को राज्य की सर्वोच्च शक्ति की ही आवाज़ माना जाता था।
क्या है कोयला घोटाला
कोयला घोटाला ईडी के अनुसार छत्तीसगढ़ में एक गिरोह संचालित करता था। ईडी ने कोर्ट को यह बताया है कि सूर्यकांत तिवारी इस घोटाले के किंगपिन थे। सूर्यकांत तिवारी प्रति टन 25 रुपए की अवैध वसूली करते थे।उसके बिना कोयला परिवहन संभव नहीं था। सूर्यकांत तिवारी और उनके सहयोगियों को यह असीमित शक्ति सौम्या चौरसिया से मिलती थी। ईडी के अनुसार यह घोटाला पाँच सौ करोड़ के आसपास का है।
सीएम भूपेश इसे प्रायोजित कार्रवाई बताते हैं
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ईडी की इस कार्रवाई को लेकर हमेशा से सवाल खड़े करते रहे हैं। सीएम भूपेश ईडी की कार्रवाई को बीजेपी प्रायोजित और षड्यंत्र बताते रहे हैं। कर्नाटक पुलिस द्वारा चार्जशीट से शेड्यूल अफेंस हटाए जाने के बाद उन्होंने उत्साह से कहा था कि शेड्यूल अफेंस हट चुका है, यह मामला बीजेपी प्रायोजित था अब सच सामने आ चुका है। ईडी की कार्रवाई उसी एफ़आइआर पर टिकी थी, मूल प्रकरण से धारा हट गई तो बचत कार्रवाई का आधार ही नहीं है।
लेकिन राहत मिलती उसके पहले ही ..
लेकिन इसके पहले कि कोयला घोटाला मामले में आरोपी के रुप में जेल में दाखिल लोगों को राहत मिलती, आयकर विभाग ने एक परिवाद भोपाल कोर्ट में पेश कर दिया, और उस परिवाद दायर करने की सूचना आयकर विभाग ने ईडी को दी जिस पर ईडी ने उसे रायपुर के कोयला घोटाला मामले में दर्ज पीएमएलए के तहत ECIR/RPZO/09/2022 में शामिल कर लिया।जबकि ईडी ने निखिल चंद्राकर को गिरफ़्तार किया तब भी यह उम्मीद बंधी कि, कर्नाटक पुलिस की चार्जशीट का उल्लेख कर स्पेशल कोर्ट से राहत मिलेगी लेकिन तब भी ऐसा नहीं हो पाया। ईडी के विशेष लोक अभियोजक डॉ सौरभ पांडेय ने तर्कों से यह स्थापित कर लिया कि ईडी की कार्रवाई विधिक अधिकारिता से संपन्न है।