राहुल रघुवंशी, भोपाल . राजस्थान के साथ ही मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव हुए थे। इन तीनों राज्यों में एमपी और छत्तीसगढ़ में मंत्री मंडल का विस्तार हो चुका है, लेकिन राजस्थान का इंतजार कब पूरा होगा, इसकी किसी को खबर नहीं है। इतना ही नहीं, मंत्री मंडल विस्तार की राजस्थान के राजभवन को भी कोई सूचना नहीं है। यही वजह है कि 23 दिसंबर से राजभवन ने मंत्री मंडल के विस्तार की तैयारी कर रखी है। राजभवन में लगे टेंट और कुर्सियों पर करीब 4 लाख रुपए प्रतिदिन का खर्चा हो रहा है। यानी 28 तारीख को भी शपथ मान ली जाए तो 25 लाख रुपए अब तक खर्च हो चुके हैं अब तक।
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राजस्थान : राजभवन रस्ता देखे...कब आएंगे शपथ लेने वाले
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जितना ज्यादा समय, उतना ज्यादा बर्बादी
राजभवन में टेंट कुर्सी सहित अन्य सजावट व तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। अब बस इंतजार है कि कब दिल्ली से लिस्ट फाइनल हो और यहां राजभवन की तैयारियों का उपयोग हो सके। मंत्री मंडल के विस्तार में जितना ज्यादा समय लेगा, उतना ही खर्चा टेंट कुर्सी आदि का बढ़ता जाएगा। राजभवन में मंत्री मंडल के शपथ ग्रहण समारोह में जितना ज्यादा समय लगेगा, उतनी ही ज्यादा जनता के पैसे की बर्बादी होगी।
मंत्री मंडल विस्तार में देरी की वजह साफ नहीं
पार्टी नेताओं के बयानों से संकेत मिल रहे हैं कि अब मंत्रिमंडल विस्तार गुरुवार या शुक्रवार तक टल गया है। हालांकि इस देरी का कोई कारण समझ में नहीं आ रहा है और ना ही पार्टी का कोई नेता इस पर कुछ बोलने के लिए तैयार हैं। ऑफ रिकॉर्ड बातचीत में भी पार्टी नेता स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं बता रहे और यही कह रहे हैं सबकुछ ऊपर से तय होना है इसलिए हमें भी कुछ नहीं पता।
क्या गुटबाजी है वजह ?
अब मंत्रिमंडल गठन में हो रही देरी को पार्टी की आंतरिक गुटबाजी से जोड़कर देखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि मंत्रिमंडल में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थकों के नामों पर सहमति नहीं बन पा रही है।
लोकसभा चुनाव को देखते हुए विवाद नहीं चाहती बीजेपी
जितने विधायक जीतकर आए हैं, उनमें पिछला अनुभव रखने वाले ज्यादातर विधायक पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थक माने जाते हैं। क्योंकि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा स्वयं पहली बार के विधायक हैं। ऐसे में मंत्रिमंडल में अनुभवी विधायकों का होना जरूरी माना जा रहा है, लेकिन पार्टी की दुविधा ये है कि राजे समर्थकों को ज्यादा संख्या में शामिल किया जाता है तो कैबिनेट में ही गुटबाजी की स्थिति बन सकती है। वहीं लोकसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी कम से कम अभी किसी तरह का विवाद नहीं चाहती है। बहरहाल, कारण चाहे कुछ भी हो, लेकिन कैबिनेट के गठन में हो रही देरी ने प्रतिपक्ष में बैठी कांग्रेस को हमलावर होने का मौका जरूर दे दिया है, जो अब इस देरी को बड़ा मुद्दा बनाती दिख रही है।