आपातकाल : राजमाता विजयाराजे और अटल ने किया संघर्ष

भारत में आपातकाल का दौर 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक रहा, इस दौरान भारत में कई राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों के साथ-साथ अत्याचार और मानवाधिकार हनन की घटनाएं भी घटीं। आपातकाल का मध्‍य प्रदेश से महत्वपूर्ण कनेक्शन और अनुभव रहा।

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Ravi Kant Dixit
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आपातकाल
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BHOPAL. जब- जब भी आपातकाल की बात आती है तो मध्यप्रदेश का भी जिक्र होता है। वह एक कठिन और चुनौतीपूर्ण दौर था, जिसने राज्य के राजनीतिक और सामाजिक ढांचे पर गहरा असर डाला। मीसा के तहत की गई गिरफ्तारियों ने जनता में भय और असंतोष का माहौल पैदा किया। मीसाबंदियों का संघर्ष भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो भविष्य में स्वतंत्रता और न्याय की रक्षा के लिए प्रेरणा का काम करता है।

भारत में आपातकाल (Emergency) का दौर 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक रहा, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लागू किया था। इस दौरान भारत में कई राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों के साथ-साथ अत्याचार और मानवाधिकार हनन की घटनाएं भी घटीं। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़, जो उस समय एक ही राज्य थे (छत्तीसगढ़ 2000 में अलग राज्य बना), का भी आपातकाल के दौरान महत्वपूर्ण कनेक्शन और अनुभव रहा।

मप्र में अभी हैं इतने मीसाबंदी 

मध्य प्रदेश में अभी करीब साढ़े चार हजार मीसाबंदी हैं। सरकार इनमें से आधे मीसाबंदियों को पेंशन देती है। 

कैलाश सारंग और बाबूलाल गौर भेजे गए जेल

इमरजेंसी में मध्य प्रदेश के युवाओं ने लोकतंत्र सेनानी के तौर पर हिस्सा लिया था। भोपाल में स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले युवाओं ने जेल भरो आंदोलन किया। कैलाश सारंग ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। वे संरक्षक की भूमिका निभाते रहे। बाबूलाल गौर जेल भेजे गए थे। कहा जाता है कि वे जेल में चुटकुले-कहानियां सुनाकर सबकी चिंताओं को दूर करते थे।

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अटल जी लिखते थे कविताएं

आपातकाल के दौरान सभी विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे। उन्हें 18 महीने तक कैद कर रखा गया था। इस दौरान उन्होंने अपनी कविताओं के जरिए इंदिरा गांधी के आपातकाल लागू करने के फैसले की आलोचना की थी। जब 1977 में आपातकाल हटा तो जनता पार्टी की सरकार और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। उस सरकार में वाजपेयी ने विदेश मंत्री के रूप में काम किया।

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तिहाड़ में रहीं थी राजमाता विजयाराजे

आपातकाल के बीच 3 सितंबर 1975 को ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया को तिहाड़ जेल भेज गया था। उन पर आर्थिक अपराध की धारा लगाई गई थी। उनके बैंक खाते सील कर दिए गए। सिंधिया अपनी आत्मकथा 'प्रिंसेज़' में लिखती हैं, 'तिहाड़ में मैं कैदी नंबर 2265 थी। जब मैं तिहाड़ पहुंची तो वहां जयपुर की महारानी गायत्री देवी ने मेरा स्वागत किया। हम दोनों ने सिर झुकाकर और हाथ जोड़ कर एक दूसरे का अभिवादन किया।

आपातकाल के दौरान स्थिति

मध्यप्रदेश में भी अन्य राज्यों की तरह बड़े पैमाने पर नेताओं और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां हुईं। जो लोग इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ थे, उन्हें मीसा (Maintenance of Internal Security Act) के तहत गिरफ्तार किया गया।

राज्य में सभी प्रमुख समाचार पत्रों और पत्रिकाओं पर कड़ी सेंसरशिप लगाई गई। सरकार के खिलाफ किसी भी प्रकार की खबर को प्रकाशित करने की अनुमति नहीं थी।रेडियो और टेलीविजन पर भी सरकार का नियंत्रण था, जिससे केवल सरकारी दृष्टिकोण ही जनता तक पहुंचाया गया।

आपातकाल में जनसंख्या नियंत्रण के लिए जबरन नसबंदी अभियान चलाए गए। सूबे के ग्रामीण इलाकों में इसका व्यापक असर देखा गया, जिससे लोगों में भारी असंतोष और डर का माहौल बना।

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