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छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में नक्सलियों के विरुद्ध ताबड़तोड़ कार्रवाई जारी है। सुरक्षाबलों के एक्शन के कारण प्रदेश में नक्सली न केवल घटे हैं, बल्कि कमजोर भी पड़े हैं। इसके विपरीत 25 मई, 2013 को झीरम घाटी में नक्सली हमले के 12 साल बाद भी पीड़ितों के परिवारों के जख्म अभी नहीं भरे। इस हमले में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं सहित 27 लोगों की जान गई थी, लेकिन आज तक इस मामले की जांच पूरी नहीं हो सकी। परिजन सच्चाई और न्याय की उम्मीद में अब भी इंतजार कर रहे हैं।
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नक्सलियों ने बरपाया था कहर
वर्ष 2013 में विधानसभा चुनाव से पहले सुकमा जिले की झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला बोला था। इस हमले में बस्तर टाइगर के नाम से मशहूर महेंद्र कर्मा, तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल सहित 27 लोगों की हत्या कर दी गई थी। हाल के वर्षों में नक्सली सरगना बसव राजू जैसे बड़े इनामी नक्सलियों का सफाया हुआ, लेकिन झीरम कांड का सच अब तक सामने नहीं आया।
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महेंद्र कर्मा पर बरसाई थीं 100 से ज्यादा गोलियां
हमले में नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा के प्रति विशेष क्रूरता दिखाई। 2005 में सलवा जुडूम आंदोलन की अगुआई कर नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले कर्मा नक्सलियों के निशाने पर थे। हमले के दौरान नक्सली चिल्ला रहे थे, "कर्मा कौन है?" जवाब में कर्मा ने कहा, "मैं कर्मा हूं, बाकियों को छोड़ दो, जो करना है मेरे साथ करो।" इसके बाद नक्सलियों ने उन्हें जंगल में ले जाकर 100 से अधिक गोलियां मारीं और उनके शव पर कूदकर अपनी बर्बरता का प्रदर्शन किया।
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परिजनों के जख्म अब भी हरे
हमले में अपने पिता नंदकुमार पटेल और भाई दिनेश को खोने वाले पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल कहते हैं, "हर साल झीरम कांड की बरसी पर पुराने घाव हरे हो जाते हैं।" वे कहते हैं कि इस घटना ने उनकी जिंदगी बदल दी। राजनीति में आने की उनकी कोई मंशा नहीं थी, लेकिन पिता और भाई की विरासत संभालना उनकी मजबूरी बन गई। उमेश को अब भी उम्मीद है कि एक दिन सच सामने आएगा, भले ही जांच में देरी हो चुकी हो।
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राजनीतिक षड्यंत्र की आशंका
महेंद्र कर्मा के बेटे छविंद्र कर्मा इस हमले के पीछे राजनीतिक साजिश की आशंका जताते हैं। उनका कहना है कि उस समय उनके पिता मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, जो कई लोगों को नागवार गुजर रहा था। छविंद्र का मानना है कि 12 साल बाद भी निष्पक्ष जांच की संभावना कम ही दिखती है।
जांच अब तक अधूरी
झीरम कांड की जांच के लिए विशेष न्यायिक आयोग, एनआईए और एसआईटी गठित की गईं, लेकिन कोई भी जांच अपने नतीजे तक नहीं पहुंच सकी। परिजनों और आम लोगों में यह सवाल अब भी कायम है कि आखिर कब मिलेगा झीरम घाटी के शहीदों को न्याय? बस्तर में नक्सलियों का खात्मा भले ही तेजी से हो रहा हो, लेकिन इस त्रासदी का सच सामने लाने की राह अब भी लंबी है।
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