अपर कलेक्टर अंकिता सोम ने 5 लाख में नहर की जमीन को बना दिया कमर्शियल लैंड, ऊपर तक शिकायत

एक किसान ने 30 साल पहले नहर परियोजना के लिए जमीन सरकार को दे दी। बदले में जमीन का मुआवजा ले लिया। अब 30 साल बाद उसी जमीन का डायवर्सन करा लिया, वो भी व्यवसायिक निर्माण के लिए।

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Arun tiwari
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Land Use Change Scam Korea District Additional Collector Ankita Som
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रायपुर. द सूत्र आपको एक ऐसा केस बता रहा है जो आपको थोड़ा अचंभित कर देगा। साथ ही यह भी पता चलेगा कि हमारा सरकारी सिस्टम किस तरह से काम कर रहा है।

एक किसान ने 30 साल पहले नहर परियोजना के लिए जमीन सरकार को दे दी। बदले में जमीन का मुआवजा ले लिया। सरकार ने जमीन का अधिग्रहण भी कर लिया।

अब तीस साल बाद उसी जमीन का डायवर्सन करा लिया, वो भी व्यवसायिक निर्माण के लिए। ऐसा हो भी गया, क्योंकि तत्कालीन एसडीएम ने ये मुमकिन कर दिया। इसकी कीमत भी लगाई गई। पांच लाख में यह असंभव काम संभव हो गया।

कलेक्टर के पास यह शिकायत पहुंची है कि तत्कालीन एसडीएम और वर्तमान में अपर कलेक्टर ने पांच लाख लेकर नहर की सरकारी जमीन का डायवर्सन कर दिया। आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला। 

क्या है पूरा मामला

कोरिया कलेक्टर के पास एक लिखित शिकायत पहुंची है। इस शिकायत में यह कहा गया है कि जो जमीन सरकार ने नहर परियोजना के लिए अधिग्रहित की थी, उसी का डायवर्सन कर व्यवसायिक निर्माण की परमिशन दे दी गई।

पांच लाख रुपए लेकर तत्कालीन एसडीएम अंकिता सोम ने सरकारी जमीन का डायवर्सन कर दिया। यह शिकायत सिकंदर खान नाम के व्यक्ति ने की है। इस शिकायत की पड़ताल जब द सूत्र ने की तो डायवर्सन के सारे दस्तावेज सामने आ गए।

कोरिया जिले की बैकुंठपुर तहसील के ग्राम कंचनपुर का ये पूरा मामला है। गांव की खसरा नंबर 331/2 की जमीन इस गांव में रहने वाली कलावती की है। कलावती ने इस जमीन के डायवर्सन के लिए आवेदन किया।

डायवर्सन व्यवसायिक निर्माण के लिए मांगा गया था। औाद्योगिक निर्माण के लिए इस जमीन का डायवर्सन कर दिया गया। अब यहां पर एक पेंच सामने आ गया।

दरअसल, मसला यह है जमीन का रकबा 331/2 जो है उसका अधिग्रहण सरकार ने मेज नहर परियोजना के लिए किया है। 1993 में जमीन अधिग्रहण का मुआवजा किसान ने ले लिया है। यानी यह जमीन अब सरकारी हो गई। तो सरकारी जमीन पर यह कैसे संभव है कि उसका डायवर्सन व्यवसायिक या औद्योगिक निर्माण के लिए कर दिया जाए।

शिकायत के अनुसार यह संभव हुआ मोटे लेन-देन से। तत्कालीन एसडीएम जो अब कोरिया की अपर कलेक्टर हैं अंकिता सोम ने पांच लाख रुपए में यह डायवर्सन कर दिया। इसमें तीन बिंदु खासतौर पर सामने आते हैं। 
- ग्राम पंचायत से अनापत्ति प्रमाण पत्र न लेकर सीधे सरपंच से बिना डिस्पैच नंबर के प्रमाण पत्र ले लिया गया जो कि नियम विरुद्ध है। 
- पीडब्ल्यूडी से मिली एनओसी में भी पूरी तरह अनापत्ति नहीं दी गई। 
- राजस्व निरीक्षक ने भी जमीन को लेकर अपना प्रतिवेदन दिया।

लेकिन इन सब के बाद भी अंकिता सोम ने इसका डायवर्सन कर दिया। 


सीएम सचिवालय में पहुंची शिकायत

 यह शिकायत कलेक्टर के अलावा सीएम और सीएस से की गई है। 17 सितंबर को की गई इस शिकायत में इस पूरे मामले की जांच की मांग की गई है।

शिकायतकर्ता का कहना है कि इस मामले की जांच में सारे तथ्य सामने आ जाएंगे और यह साबित हो जाएगा कि मेज परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई जमीन का अधिकारी की मेहरबानी से डायवर्सन कर दिया गया।

मेडम चूंकि अपर कलेक्टर हैं, इसलिए किसी बड़े अधिकारी से इसकी जांच करवाई जाए ताकि जांच निष्पक्ष हो और उसे प्रभावित न किया जा सके। जानकारी के मुताबिक उस जमीन पर निर्माण कार्य भी शुरु हो चुका है। लेकिन उसे अवैध बताकर प्रशासन ने पिलर को तोड़ा है और निर्माणकर्ता को नोटिस भी जारी किया गया है। 

जांच टीम ने नहीं लिया पक्ष 

जब इस बारे में अंकिता सोम से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इस मामले में पहले भी किसी ने शिकायत की थी। उस शिकायत पर कलेक्टर ने जांच टीम भी गठित की थी। लेकिन उस जांच टीम ने आज तक उनका पक्ष ही नहीं लिया।

अंकिता सोम ने कहा कि उन्होंने इस जमीन का कोई डायवर्सन नहीं किया है। पांच लाख रुपए लेने के जो आरोप लगाए गए हैं वह भी निराधार हैं। इस बारे में जल संसाधन विभाग ने माना है कि यह जमीन नहर परियोजना की है।

विभाग ने निर्माण करने वालों को नोटिस भी जारी किया है। यहां पर सवाल पैदा होता है कि आखिर जांच टीम जब गठित की जा चुकी है तो उसकी कोई रिपोर्ट सामने क्यों नहीं आई। और जांच टीम ने अंकिता सोम से बातचीत क्यों नहीं की। खैर मामला जो भी हो लेकिन एक बार फिर इस मामले की जांच की तैयारी होने लगी है।

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