इंदौर जिला प्रशासन को बड़ी सफलता, श्री खेड़ापति हनुमान मंदिर और इसकी 80 करोड़ की जमीन सरकारी घोषित

श्री खेड़ापति हनुमान मंदिर मल्हारबाग देपालपुर की शासकीय सर्वे नंबर सर्वे नंबर 190, 1065 औऱ् 1066 की 15 हेक्टेयर जमीन पर पुजारी यादवदास पिता गोवर्धनदास का दावा था। साल 1985 में यह जमीन में कलेक्टर प्रबंधक का नाम दर्ज हो गया था।

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Sanjay gupta
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INDORE. इंदौर जिला प्रशासन को श्री खेड़ापति हनुमान मंदिर देपालपुर को लेकर 24 साल से चल रहे विवाद में बड़ी सफलता मिली है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ट्रायल कोर्ट में इसकी फिर सुनवाई हुई और देपालपुर कोर्ट ने इस मंदिर और इसकी कीमती 80 करोड़ से अधिक मूल्य की जमीन को शासकीय घोषित किया है। इस सफलता के बाद कलेक्टर आशीष सिंह ने कहा कि आगे भी जिले में शासकीय जमीन को मुक्त कराने का काम जारी रहेगा। यह एक अहम आदेश है। 

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यह है विवाद

श्री खेड़ापति हनुमान मंदिर मल्हारबाग देपालपुर की शासकीय सर्वे नंबर सर्वे नंबर 190, 1065 औऱ् 1066 की 15 हेक्टेयर जमीन पर पुजारी यादवदास पिता गोवर्धनदास का दावा था। साल 1985 में यह जमीन में कलेक्टर प्रबंधक का नाम दर्ज हो गया था। इसे लेकर तहसीलदार, एसडीओ कोर्ट में केस चला। इसके बाद जिला कोर्ट में केस गया जहां पुजारी के हक में फैसला हुआ, फिर सत्र न्यायालय में प्रशासन की जीत हुई लेकिन हाईकोर्ट में फिर पुजारी के हक में फैसला हुआ। इस कीमती जमीन को लेकर अधिकारियों ने सजगता दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट का रूख किया और वहां से फैसला आया कि ट्रायल कोर्ट फिर सुने।

ट्रायल कोर्ट ने सुनवाई के बाद दिया आदेश

प्रथम व्यवहार न्यायाधीश कनिष्ठ खंड देपालपुर दिव्या श्रीवास्तव की कोर्ट में यह केस चला। इस दौरान एसडीएम रवि वर्मा, तहसीलदार शेखर चौधरी ने इस मामले में मंदिर के पुराने रिकार्ड व अन्य बारीक जानकारी जुटाकर इसे एक-एक कर कोर्ट में पेश किया। कलेक्टर आशीष सिंह के आदेश पर अधिकारियों ने इसमें सभी पेशियों पर प्रशासन का मजबूती से पक्ष रखा। इस पर कोर्ट ने पाया कि पुजारी मंदिर निर्माण 200 साल पहले खुद किए जाने का कोई सबूत पेश नहीं कर सके, ना ही वंश वृक्ष रिकार्ड पर सही है, यह संपत्ति होलकर महाराज द्वारा ईनाम में दिए जाने की बात मान भी लें तो भी इससे स्वामित्व मिलने का कोई दस्तावेज नहीं है। 

मूर्ति एक विधिक व्यक्ति है

कोर्ट ने कहा कि मूर्ति एक विधिक व्यक्ति है, जो की खुद की संपत्ति की स्वामी होती है। मूर्ति की ओर से संपत्ति का रखरखाव प्रबंधक द्वारा किया जाता है। जिसमें प्रबंधक या पुजारी का नाम हक के कॉलम में दर्ज होना जरूरी नहीं है। सभी तथ्यों से साफ होता है कि मंदिर निजी नहीं है सार्वजनिक है और इसकी जमीन का स्वामित्व भी शासकीय है। मंदिर और जमीन के निजी होने का दावा साबित नहीं होता है।

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