ठेकेदार ने बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी

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The Sootr CG
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ठेकेदार ने बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी

बालघाट रेंज में बालाघाट-बैहर पक्के रोड पर करीब 10 किलोमीटर दूर खारा एक अत्यंत सुरम्य स्थल है। पक्के रोड के जोड़ पर इस जंगल मार्ग पर एक गेट लगाकर हमेशा ताला लगा रहता था। घने जंगल के बीच खारा में जंगल महकमा का एक सुंदर रेस्ट हाउस था। इसके चारों ओर घना जंगल था। इसलिए यहां जंगली जानवर बहुतायत से पाए जाते थे। खारा (Khara) रेस्ट हाउस के पीछे खारा फैलिंग सीरीज के एक कूप की मार्किंग रेंज अस‍िस्टेंट गजनफर अली की देखरेख में की गई थी। उस कूप की नीलामी DFO द्वारा ग्यारह हजार रूपए में की गई। ठेकेदार ने कूप का चार्ज ले कर सभी जलाऊ पेड़ों की कटाई पूरी कर ली। कटाई होने के बाद ठेकेदार ने जंगल महकमे के वरिष्ठ अध‍िकारियों से श‍िकायत की कि नीलामी के समय कूप में 23 हजार जलाऊ लकड़ी के पेड़ थे। जब वह कटाई के लिए वहां पहुंचा तो उसे कूप में उतने पेड़ नहीं मिले। उस दौरान सहायक वन संरक्षक रेंज इंचार्ज था, इसलिए इस गलती के लिए मैं पूर्णत: उत्तरदायी था। शिकायत मेरे पास आई तो कूप का इंस्पेक्शन करने गया तो पाया कि सभी जलाऊ पेड़ काट लिए गए थे और उनके केवल ठूंठ ही चारों तरफ दिखाई दे रहे थे। ठेकेदार का कहना था कि ठूंठों की गिनती कर लीजिए कि 23 हजार जलाऊ पेड़ थे कि नहीं। मैंने उसे समझाने का प्रयास किया कि नीलामी के समय जो पेड़ों की संख्या दर्शाई जाती है, नीलामी की शर्तों के प्रावधान अनुसार उसकी कोई गारंटी जंगल महकमा नहीं लेता है। मैंने उसे यह भी समझाने का प्रयास किया कि कटाई करने के बाद ठूंठ गिनने से पेड़ की सही संख्या की जानकारी नहीं हो पाती है, क्योंक‍ि‍ ठूंठ के ऊपर कई शाखाएं हो सकती हैं, जिन्हें गिनती में शामिल किया जाता है। इस तरह की शर्त नीलामी के समय सुनाए जाने के अलावा ठेकेदार से किए गए एग्रीमेंट में भी यह शर्त शामिल रहती है। एग्रीमेंट में एक अन्य शर्त यह भी शामिल होती है कि ठेकेदार कटाई करने के बाद बल्लियों को इकट्ठा कर आसपास के ग्रामीणों को जंगल महकमे द्वारा निर्धारित कम दर पर उपलब्ध कराएगा। ठेकेदार द्वारा बल्ल‍ियों का वितरण ग्रामीणों को नहीं किया गया। वह ठेकेदार डाकूओं जैसा व्यवहार करता था। उसने जंगल महकमे के अन्य रेंज ऑफि‍सरों तक यह खबर फैलाई कि कूप में बताए गए पेड़ों से उसे कम पेड़ मिले। ठेकेदार ने मुझे बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने यह भी धमकी देना शुरू कर दी कि वह इस मामले को हाईकोर्ट तक ले जाएगा।



जब अपने कैरियर चौपट होने का भय सताने लगा



मुझे इस तरह के मामलों को निबटाने का कोई अनुभव नहीं था। मैं तनाव में आ गया। अन्य रेंज ऑफिसर भी मुझसे पेड़ों की संख्या के बारे में पूछते रहते। उन्हें भी एक एसीएफ के रेंज में रहते हुए उसकी गलती पाए जाने पर मन ही मन आनंद का अनुभव होने लगा। मुझे यह भय सताने लगा कि अगर 11 हजार रूपए की वसूली का मुझ पर आदेश होगा, तो मैं कहां से इतनी राशि का इंतजाम कर पाऊंगा। यदि घर का सारा सामान भी बेच देता तब भी इतनी राशि नहीं जुटा पाता। मुझे अपने कैरियर के चौपट होने का डर अलग से सता रहा था। यह वह समय था जब मैं अपने शासकीय सेवा के जीवनकाल में सबसे अधिक तनाव में था। विवाह हुए ज्यादा दिन नहीं हुए थे। पत्नी शकुन को यह समस्या बता कर उन्हें तनाव में डालने का कोई औचित्य नहीं था। फिर भी वे मेरी मन:स्थिति देखकर भांप गई थी कि मैं तनाव हूं। बालाघाट डीएफओ ने भी मुझसे इस कूप के पेड़ों की गिनती के बारे में प्रश्न किए। यहां तक कि कंजरवेटर जबलपुर जब बालाघाट दौरे पर आए तो मुझसे इस कूप में पेड़ों की कमी के संबंध में पूछताछ की। इन सब घटनाक्रम के कारण मेरे तनाव में दिनोंदिन वृद्धि हो रही थी।



ठेकेदार द्वारा इमारती पेड़ों को काटने का खेल 



जलाऊ पेड़ों की रिकॉर्डिंग नंबर डालकर नहीं की जाती थी, बल्कि जलाऊ पेड़ के सामने खड़े हो कर उसके ऊपर गेरू का निशान लगाया जाता था। इसी के साथ एक डॉट रिकॉर्ड बुक में दर्ज किया जाता था। इस तरह पूरे कूप के जलाऊ पेड़ों की संख्या रिकॉर्ड बुक में दर्ज डॉट्स को गिनकर ज्ञात हो जाती थी, जिसे नीलामी के समय घोषणा कर बताया जाता था। मुझे संदेह रहा कि गजनफर अली ने खारा के फॉरेस्ट गार्ड बैरागी के साथ बैठकर संभवतः अंदाज से रिकॉर्ड बुक मैं डॉट्स बना दिए होंगे। कूप की अपसेट प्राइस बनाने में मुख्य मूल्य इमारती वृक्षों का होता है, जिन्हें नंबर डालकर रिकॉर्ड किया जाता है। इस पद्धति में कोई गलती होने की संभावना नहीं रहती। जलाऊ पेड़ों का मूल्य काफी कम होता है, इसलिए ठेकेदार इमारती पेड़ों को काट कर लट्ठे व बलिया इकट्ठा करता रहा। जैसे ही लीज पीरियड खत्म होने की ओर आया, वह अपना पूरा मटेरियल ढुलाई कर के ले गया। उसने आसपास के ग्रामीणों को एग्रीमेंट की कंडीशन के अनुसार एक भी बल्ली सप्लाई नहीं की और जलाऊ पेड़ों की गलत गिनती का भ्रम डालकर उसने सभी बल्ल‍ियां खुद के लिए बचा ली और अंत में पूरा माल ढुलाई करके ले गया। उसके द्वारा की गई शिकायत अपने आप निष्प्रभावी हो गई और इसके साथ ही मेरा तनाव भी खत्म हो गया।



जब फॉरेस्ट गार्ड को गलती करने पर पड़ा चांटा



कुछ समय पश्चात डीएफओ लहरी को फिनलैंड की विदेश यात्रा के लिए चुना गया। उनके स्थान पर नए डीएफओ के रूप में जीपी पाठक बालाघाट में पदस्थ हुए। वे ज़मीन से जुड़े हुए ईमानदार, व्यवहार कुशल परन्तु अनुशासनप्रिय अधिकारी थे। मेरी रेंज ट्रेनिंग भी पूरी हो चुकी थी। इसके बाद मेरी नियुक्त‍ि डीएफओ ऑफ‍िस में हो गई और इसके साथ ही मेरा कार्य क्षेत्र पूरा बालाघाट ड‍िवीजन हो गया। नई नियुक्त‍ि के साथ मेरा शासकीय आवास बदल गया, लेकिन यहां भी पानी व बिजली उपलब्ध नहीं थी। इस दौरान बैहर दौरे पर गया, जहां रेंज ऑफिसर के रूप में जगबीर बख्शी पदस्थ थे। मैं उनके साथ एक कूप का निरीक्षण करने गया और रिकॉर्ड बुक में पेड़ों की जो ऊंचाई व  गोलाई दर्ज की गई थी, उसे चेक करने लगा। इस काम को करने के लिए बख्शी ने एक फॉरेस्ट गार्ड को निर्देश दिए। फॉरेस्ट गार्ड टेप छाती ऊंचाई पर ना लगा कर कभी ऊपर लगाने लगा तो कभी नीचे लगाने लगा। बक्शी ने उसे डांट लगाई। अगले पेड़ पर गार्ड फिर वही गलती दोहराने लगा। मैं आगे चलने लगा और बख्शी अपने कर्मचारियों एवं उसी फॉरेस्ट गार्ड के साथ चल रहे थे। तभी मुझे जोर से चांटा लगाने की आवाज सुनाई दी। मैं समझ गया की रेंजर साहब ने चांटे के रूप में उस फॉरेस्ट गार्ड को गलती दोहराने के लिए ही सजा दी थी। हालांकि मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। फॉरेस्ट रेंजर बख्शी एक दबंग व कार्यकुशल रेंज ऑफिसर के रूप में जाने जाते थे। इस घटना से स्पष्ट हुआ कि वे जल्द गुस्से में आने वाले व्यक्ति भी थे।



ठूंठों पर पत्त‍ियों के ढेर लगाकर छिपाई जाती थी अवैध कटाई



हम लोगों को मुक्की एवं सूपखार के सरकारी दौरे पर अक्सर जाना पड़ता था। यहां फॉरेस्ट रेस्ट हाउसों के चारों ओर बहुत ही सुंदर जंगल क्षेत्र था। चारों ओर शांति रहती थी। मुक्की फॉरेस्ट रेस्ट हाउस के चारों ओर साल के बहुत ऊंचे पेड़ मौजूद थे। शाम होने से ही पहले वहां अंधेरा हो जाता था। सूपखार में दो फॉरेस्ट रेस्ट हाउस थे। यहां आस-पास चीड़ प्रजाति का पौधारोपण किया गया था। पास ही साल के घने जंगल थे। इन जंगलों में वन्य प्राणी बहुतायत से पाए जाते थे। अब ये सभी जंगल कान्हा नेशनल पार्क में शामिल कर लिए गए हैं। यह जंगल कान्हा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अब यहां जंगलों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध है, जो पेड़ उखड़ कर गिर जाते हैं, उन्हें उठाया नहीं जाता और उसी स्थिति में छोड़ दिया जाता है। इसका उद्देश्य है कि प्रकृति से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ न की जाए। जो प्राकृतिक रूप से होता रहता है, उसे वैसा ही स्वीकार किया जाए। जंगली जानवरों को भी पूर्ण संरक्षण दिया जाता है और उनके शिकार पर अब पूर्ण प्रतिबंध है। मैं जब सूपखार दौरे पर गया, उस समय यह क्षेत्र कान्हा नेशनल पार्क में शामिल नहीं हुआ था। कूपों में कटाई नियमित रूप से की जाती थी। एक कूप का इंस्पेक्शन करने जब पहुंचा तो आश्चर्यचकित रह गया। ठेकेदार द्वारा साल के कई मोटे-मोटे पेड़ों को अवैध रूप से काट कर उनके ठूंठों को जमीन की सतह से मिलाकर चिकना कर काट दिए गए हैं। उनके ऊपर पत्तियों का ढेर फैला कर रख दिया गया था, ताकि इंस्पेक्शन के समय वे ठूंठ दिखाई ना दें। इन पेड़ों से प्राप्त लट्ठे ठेकेदार द्वारा पहले ही ढुलाई कर निकाल लिए गए थे। जंगलों का राष्ट्रीयकरण होने के बाद ठेकेदारों का जंगलों में प्रवेश वर्जित हो गया। इस तरह की अवैध कटाई पर अब काफ़ी हद तक रोक लग चुकी है।



(लेखक सेवानिवृत्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक मध्यप्रदेश हैं)

 


Madhya Pradesh मध्यप्रदेश द सूत्र The Sootr SR Rawat एसआर रावत DFO डीएफओ Balghat Range Principal Chief Conservator of Forests Khara Assistant Conservator of Forests बालघाट रेंज प्रधान मुख्य वन संरक्षक खारा सहायक वन संरक्षक