राजनीतिक पारी में क्यों असफल रहे सबसे कामयाब 'कैप्टन', जानें पूरी कहानी

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Sootr Desk rajput
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राजनीतिक पारी में क्यों असफल रहे सबसे कामयाब 'कैप्टन', जानें पूरी कहानी

पाकिस्तान की सियासत का अपनी ही अलग इतिहास है। राष्ट्र के गठन के बाद से अब कोई भी प्रधानमंत्री 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। इमरान खान भी ऐसा करने में असफल साबित हुए। वह करीब पौने चार साल में ही कुर्सी से उतार दिए गए। पाकिस्तान के सबसे सफल क्रिकेट कैप्टन से सबसे असफल प्रधानमंत्री बनने तक इमरान खान की जिंदगी काफी रोचक भरी रही। यह ट्विस्ट और टर्न से भरपूर है। प्लेबॉय इमेज वाले इमरान अब हर जगह हाथ में तसबीह (जप करने वाली माला) लिए नजर आते हैं। समय के साथ उनका व्यक्तित्व कैसे बदला ? और कैसे उन्होंने यहां तक का सफर तय किया ? सब जानेंगे।





क्रिकेटर से असफल PM तक का सफर





पाकिस्तान के बेहद कामयाब क्रिकेटर रहे इमरान खान सबसे नाकामयाब वजीर-ए-आजम के ओहदे तक कैसे पहुंचे? इसे जानने के लिए उनके पूरे करियर को हिस्सों में बांटकर देखा जा सकता है। पहला- 1992 के क्रिकेट वर्ल्ड कप में पाकिस्तान की जीत और दूसरा- 1996 में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) का गठन। यही दोनों घटनाएं इमरान के करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुईं।





इमरान ने जब PTI का गठन नहीं किया था, तब राजनीति से उनका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। यहां तक कि उन्होंने तो कभी चुनाव में वोट तक नहीं डाला था। 1996 में पार्टी बनाने के बाद उन्होंने सिर्फ 7 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन यहां उन्हें करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। हालांकि धीरे-धीरे इमरान का राजनीतिक अनुभव और पार्टी कैडर दोनों बढ़ते गए।





1999 में कारगिल की करारी हार के बाद जनरल परवेज मुशर्रफ ने तब के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का तख्तापलट कर दिया। उस वक्त इमरान ने इस तख्तापलट का खुलकर समर्थन किया, लेकिन 2002 आने तक वो मुशर्रफ के विरोधी बन गए। इसी साल इमरान की पार्टी ने एक बार फिर चुनावी मैदान में ताल ठोकी, लेकिन उसे 272 में से महज 1 सीट ही मिल पाई।









मुशर्रफ को फांसी दिलाने की मांग की





3 नवंबर 2007 को राष्ट्रपति मुशर्रफ ने पाकिस्तान में इमरजेंसी लगा दी, तब इमरान ने मुशर्रफ को फांसी की सजा देने की मांग की। इसके बाद उन्हें नजरबंद कर दिया गया, लेकिन वो वहां से फरार हो गए। बाद में उन्हें गाजी खान जेल में बंद कर दिया। हालांकि 21 नवंबर को अन्य राजनीतिक कैदियों के साथ इमरान को भी रिहाई मिल गई।









सड़क पर उतरकर विरोध किया





2008 के चुनावों का PTI ने बहिष्कार किया। सीधे सड़क पर उतरकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। 2009 में उन्हें तब के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने घर में कैद कर दिया। 2013 में इमरान ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) की सरकार के खिलाफ हल्ला बोला और पाक-अफगान बॉर्डर एरिया में अमेरिकी ड्रोन हमलों का विरोध किया।





ये वो दौर था जब पाकिस्तान की सियासत में उथल-पुथल जोरों पर थी। सरकार पूरी तरह से अस्थिर हो चुकी थी। इस सियासी घमासान ने इमरान के राजनीतिक ग्राफ को ऊपर उठाने में काफी मदद की। महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त हो चुकी जनता इमरान के वादों पर ऐतबार करने लगी।









फौज ने ही दिलाई थी सत्ता





पाकिस्तान की सियासत की जानकारी रखने वाले बताते हैं कि 2018 में फौज ही खान को जरदारी और शरीफ के जवाब के तौर पर सत्ता में लाई थी। इमरान खान जब भी घिरे तो जनरल बाजवा और ISI के तब के चीफ जनरल फैज हमीद ने उन्हें बचा लिया।





बहरहाल, सत्ता में आने के बाद इमरान ने मुल्क की कमान अपने हाथ में रखने की कोशिश की। फौज को उनका यह रुख कभी बर्दाश्त नहीं हुआ। इसके बाद जब उन्होंने फौज से सीधे उलझने की कोशिश की तो उनका भी वही हश्र हुआ, जो हर चुनी हुई सरकार का होता आया है। माना जा रहा है कि अविश्वास प्रस्ताव के पीछे भी सेना का अहम रोल है।









इमरान खान की तीन शादियां हुईं





बतौर क्रिकेट प्लेयर इमरान की इमेज प्लेबॉय की रही। 1995 में 43 साल की उम्र में उन्होंने 21 साल की यहूदी महिला जेमिमा गोल्डस्मिथ से शादी की, लेकिन यह शादी लंबे वक्त चल नहीं पाई और 2004 में तलाक हो गया। इसके बाद इमरान ने 2015 में पत्रकार रेहम खान से शादी की, यह शादी भी सिर्फ 1 साल चली। प्रधानमंत्री बनने से पहले इमरान ने 2018 में बुशरा बीबी से तीसरी शादी की।









विवादों से पुराना नाता





हर शादी के साथ इमरान की जिंदगी से जुड़े विवाद भी जारी रहे। उनकी दूसरी पत्नी रेहम खान ने किताब लिखकर कई राज बेपर्दा कर दिए। उन्हें समलैंगिक तक बता दिया। तीसरी पत्नी बुशरा बीबी ने टोने-टोटके में उलझाकर और बदनामी कराई। ब्रिटेन में एक और बेटी होने का राज भी आखिरकार सामने आ गया। आरजू काजमी समेत पाकिस्तान के कई पत्रकारों ने उन्हें इशारों-इशारों में ड्रग एडिक्ट तक बता दिया।



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