नई दिल्ली. आम आदमी पार्टी (AAP) का गठन 2012 में हुआ था। यानी पार्टी को बने कुल जमा 10 साल हुए हैं। इसमें सफलता का ग्राफ देखें तो सीधा आसमान की तरफ जाता दिखाई देता है। 2013 में आप ने दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और 28 सीटें जीतीं। 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव आप ने इतिहास रचा और 70 में से 67 सीटें जीतकर विपक्ष जैसी बाधा ही खत्म कर दी। 2020 में जब दूसरी बार दिल्ली में चुनाव लड़ा तो 63 सीटें जीतीं। हाल ही में आप ने पंजाब में रिकॉर्डतोड़ बहुमत से सरकार बनाई है। पंजाब की 117 सीटों में से आप ने 92 जीत लीं। वहीं, उत्तराखंड और गोवा में भी पार्टी ने अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी है। आंकड़े बताते हैं कि आम आदमी पार्टी सूपड़ा साफ कर देती है।
अब आप देश के 54 राजनीतिक दलों में सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली पार्टी बन गई है। इसी के साथ आने वाले वक्त में आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय पार्टियों में शुमार होने का दावा पेश कर सकती है। समझें, आम आदमी पार्टी कैसे दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों से अलग है...
जब कांग्रेस कमजोर पड़ी तो क्षेत्रीय दल उभरे: आजादी के बाद करीब 20 साल पूरे देश में कांग्रेस का दबदबा था। 1967 के बाद से जिन राज्यों में कांग्रेस की पकड़ कमजोर हुई, वहां क्षेत्रीय दलों को उभरे। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बसपा, बिहार में JDU या RJD, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस अस्तित्व में आईं। बाद में एक से ज्यादा राज्यों में अपनी जड़ें मजबूत कीं, लेकिन रफ्तार के स्तर पर AAP का मामला थोड़ा अलग नजर आता है।
54 क्षेत्रीय दलों से आगे आप: चुनाव के सितंबर 2021 का डेटा बताता है कि देश में कुल 2 हजार 858 रजिस्टर्ड दल हैं। चुनाव आयोग ने सिर्फ 8 पार्टियों को नेशनल पार्टी का दर्जा दिया है और करीब 54 राजनीतिक दलों को राज्य स्तरीय पार्टी होने की मान्यता हासिल है। आम आदमी पार्टी को भी स्टेट लेवल पार्टी का दर्जा मिला हुआ है। 2 हजार 796 ऐसी पार्टियां हैं, जिन्हें रजिस्टर्ड होने के बावजूद मान्यता हासिल नहीं है।
भ्रष्टाचार विरोध का नारा, कभी गिरे, कभी उठे..अब दौड़े: AAP दिल्ली में हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकली थी। पार्टी ने पॉलिटिकल डेब्यू भी दिल्ली से ही किया। 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के पहले AAP ने ‘बिजली पानी आंदोलन’ चलाया। अरविंद केजरीवाल ने तब शीला दीक्षित सरकार के खिलाफ धरना दिया और 14 दिनों तक भूख हड़ताल की। 2013 के चुनाव में आप को पहली बड़ी सफलता हाथ लगी। AAP ने 70 में से 28 सीटें जीतकर चौंका दिया। कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई, लेकिन ये गठबंधन सरकार 49 दिन ही चल सकी। फरवरी 2014 में अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया।
केजरीवाल ने दिल्ली सरकार से इस्तीफा देने के बाद जोश में आकर लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। बिना ये देखे कि पार्टी का कैडर क्या है और सामने कौन है। AAP ने 2014 लोकसभा चुनाव में देशभर में 400 उम्मीदवारों को उतारा, लेकिन इनमें से सिर्फ 4 ही जीत सके। ये चारों पंजाब से ही थे। इसने केजरीवाल को अहसास करा दिया कि पंजाब में AAP का भविष्य सुनहरा हो सकता है।
क्षेत्रीय पार्टियों से आप अलग कैसे?: आप किसी पहचान, भाषा, संस्कृति, समुदाय, जाति, धर्म, क्षेत्र से जुड़ी पार्टी नहीं है, बल्कि ये एक राष्ट्रीय आंदोलन से निकली पार्टी है, जिसमें देश के सभी हिस्सों से आए लोग शामिल हुए। पार्टी ने अपने प्रतीकों के रूप में भी महात्मा गांधी, बाबा साहब अंबेडकर और भगत सिंह जैसी शख्सियतों को चुना। पंजाब चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी ने अंबेडकर और भगत सिंह को और ज्यादा अहमियत दी। इसकी वजह ये है कि अंबेडकर और भगत सिंह दोनों राष्ट्रीय स्तर के नेता रहे हैं। पूरे देश के युवाओं का खासा रुझान भगत सिंह की तरफ है, तो वहीं दलित आबादी अंबेडकर से खुद को कनेक्ट करती है।
ऐसे मिलता है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा: इसकी 3 शर्तें हैं। तीन में से कोई भी एक शर्त पूरी होने पर चुनाव आयोग किसी पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा देता है।
1. कोई भी दल, जिसे चार राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा प्राप्त हो।
2. पार्टी तीन अलग-अलग राज्यों में मिलाकर लोकसभा की 2% सीटें (11 सीटें) जीत ले। ये 11 सीटें तीन अलग-अलग राज्यों से होना चाहिए।
3. यदि कोई पार्टी 4 लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा या विधानसभा में चार राज्यों में 6% वोट हासिल कर ले।
तीसरी शर्त के मुताबिक, पार्टी को 4 राज्यों में कम से कम 6% वोट चाहिए होते हैं। AAP को दिल्ली में 55%, पंजाब में 42%, गोवा में 6.77% वोट मिले थे। हालांकि, उत्तराखंड में पार्टी को सिर्फ 0.3% वोट ही मिल सके। ऐसे में आगे होने वाले राज्यों में पार्टी को किसी और एक राज्य में 6% वोट हासिल करना होगा और फिर अगले लोकसभा चुनाव में कम से कम 4 सीटें जीतनी होंगी। इसके बाद राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हो जाएगा।