देसी ब्रांडः 350 डॉलर के उधार से शुरू होने वाला बाटा कैसे बना भारत के हर घर का जूता

बाटा की कहानी संघर्ष और सफलता की मिसाल है। 1894 में एक छोटे कस्बे से शुरू होकर, थॉमस बाटा ने कड़ी मेहनत और रणनीति से वैश्विक ब्रांड बना दिया। भारत में उन्होंने किफायती और टिकाऊ जूते पेश किए।

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Manish Kumar
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Photograph: (The Sootr)

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Be इंडियन-Buy इंडियन: बाटा की कहानी एक देसी ब्रांड के रूप में स्वदेशी बाजार में सफलता की मिसाल पेश करती है। चेकोस्लोवाकिया से शुरू होकर थॉमस बाटा ने संघर्षों के बीच इस स्वदेशी ब्रांड को भारत में स्थापित किया। किफायती, टिकाऊ और आरामदायक जूतों के साथ, बाटा ने भारतीय मध्यम वर्ग में अपनी मजबूत पहचान बनाई।

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बाटा की शुरुआत: एक गरीब जूता परिवार से ग्लोबल ब्रांड तक

सब कुछ 1894 में हुआ था जब चेकोस्लोवाकिया के एक छोटे कस्बे ज़्लिन में थॉमस बाटा ने अपनी और अपने परिवार की आठवीं पीढ़ी के जूता बनाने के काम को आगे बढ़ाने की ठानी। उनका परिवार गरीब था और पिता का निधन हो चुका था। 17 साल की उम्र में थॉमस ने अपनी मां से 350 डॉलर उधार लेकर अपने भाई-बहन के साथ मिलकर "टी एंड ए बाटा शू कंपनी" की स्थापना की। उनके शुरुआती दिन संघर्ष से भरे थे, कर्ज में डूबे हुए और एक बार दिवालिया होने के बाद थॉमस ने कई देशों में काम किया, जूतों के व्यवसाय की बारीकियों को समझा, तब जाकर वापसी की और कारोबार को फिर से खड़ा किया। धीरे-धीरे उनके द्वारा प्रोडक्ट रेंज बढ़ाई गई और दूसरे देशों में स्टोर भी खोलने लगे।

बाटा ब्रांड की शुरुआती संघर्ष की कहानी

बिजनेस की शुरुआत में आर्थिक तंगी और कर्ज ने थामस बाटा को मुश्किलों में डाल दिया। एक बार कंपनी दिवालिया घोषित हो गई। फिर इंग्लैंड में मजदूरी करते हुए उन्होंने काम की गहरी समझ हासिल की। भारत में व्यापार करने के विचार के साथ थॉमस 1920 के दशक में भारत पहुंचे और देखा कि बड़ी आबादी नंगे पैर चल रही है। यह एक बड़ा मौका था। मार्च 1931 में भारत में बाटा शू कंपनी प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना हुई। कोलकाता के पास बाटानगर में बड़ी फैक्ट्री बनाई गई। शुरुआती दिनों में मार्केट की कड़ी प्रतिस्पर्धा और आर्थिक अस्थिरता के बावजूद बाटा ने धैर्य और रणनीति के साथ कारोबार बढ़ाया।

बाटा की सफलता की कहानी

भारत में बाटा ने आर्थिक और सामाजिक जरूरतों को भांपकर टिकाऊ और किफायती जूते बनाए। शुरुआत से ही उन्होंने कीमतें कम रखीं ताकि आम मध्यम वर्ग के लिए उत्पाद सुलभ हों। यह रणनीति उन्हें स्थानीय जापानी और देसी ब्रांड से आगे ले गई। 1939 तक भारत में उनके 86 आउटलेट थे और लगभग 4000 कर्मचारी काम कर रहे थे। कंपनी ने 1973 में सार्वजनिक कंपनी बनते हुए "बाटा इंडिया लिमिटेड" का नाम लिया और भारतीय बाजार में अपनी पकड़ मजबूत की। 2000 के दशक में बाटा ने ट्रेंडी और स्टाइलिश फुटवियर की श्रेणी में भी खुद को स्थापित किया। आज भारत में बाटा के लगभग 1500 स्टोर हैं और जूता बाजार में लगभग 35% का हिस्सा बाटा का है।

आज बाजार में बाटा की स्थिति

बाता आज भारत में एक विश्वास और भरोसे का प्रतीक है। यह ब्रांड मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास के बीच लोकप्रिय है। उनके जूते टिकाऊ, आरामदायक और किफायती होते हैं। भारत में बाटा की फैक्ट्री तमिलनाडु, कर्नाटक, हरियाणा सहित कई राज्यों में है। शहरों और ग्रामीण इलाकों दोनों में इसका मार्केट मजबूत है। यह न केवल खुदरा दुकानों पर, बल्कि छोटे फुटवियर दुकानों में भी उपलब्ध होता है। बाटा का नाम कुछ ऐसा है जिसे भारतीय आसानी से बोल सकते हैं, जिससे लोगों को यह देशी ब्रांड महसूस होता है और उनकी वफादारी बढ़ती है।

ब्रांड बाटा की मार्केट में पॉजिशन

बाटा भारतीय फुटवियर बाजार में नंबर-1 पॉजिशन रखता है। इसकी प्रतिस्पर्धा मुख्यतः लोकल ब्रांड खादिम्स और पैरागॉन जैसे ब्रांडों से होती है, लेकिन अपनी किफायती कीमत, मजबूत निर्माण और व्यापक वितरण नेटवर्क के कारण बाटा को उपभोक्ताओं का भरोसा हासिल है। साथ ही एडिडास जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ साझेदारी से स्पोर्ट्स फुटवियर सेगमेंट में भी वापसी दर्ज की है। बाटा को मध्यम वर्ग का लग्जरी ब्रांड माना जाता है जिसकी मार्केटिंग इसी आस-पास घूमती है।

बाटा ब्रांड का मूल मंत्र

बाटा का मूल मंत्र रहा है - "किफायती, टिकाऊ और आरामदायक फुटवियर बनाना।" साथ ही उन्होंने लोकलाइजेशन पर बड़ा जोर दिया, भारत की जर्जर सड़कों और जनसंख्या की जरूरतों को समझते हुए मजबूत रबर और चमड़े के बने जूते बनाए। बाटा का अन्य मंत्र था, "मिडिल क्लास के लिए लग्जरी ब्रांड।" उन्होंने मार्केटिंग में इस भावना को मुख्य रखा कि उनके उत्पाद सिर्फ दिखावे के लिए नहीं बल्कि मजबूत, भरोसेमंद और किफायती हों।

इस कहानी से क्या सीखा जा सकता है

बाटा की कहानी से सीख मिलती है कि निरंतर संघर्ष और धैर्य से असंभव उलझनों को पार किया जा सकता है। लोकल जरूरतों को समझना और उनकी पूर्ति करना बिजनेस की सफलता की चाबी है।

मार्केटिंग और प्रोडक्ट क्वालिटी के सही संतुलन से ग्राहक विश्वास बनाया जा सकता है। छोटे स्टेप से शुरुआत कर, समय के साथ विस्तार करके गजब की सफलताएं हासिल की जा सकती हैं। एक विदेशी ब्रांड भी सही रणनीति और लोकल समझ से देशी बन सकता है।

यह कहानी प्रेरित करती है कि हर बाधा के बाद नई शुरुआत कर, बेहतर भविष्य बनाया जा सकता है।

सोर्सः

https://www.bata.com
Research Articles on Bata Innovation and Market Trends
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