यदि आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं, तो आपने क्राउड फंडिंग के बारे में तो सुना ही होगा। यह एक बहुत ही इनोवेटिव आइडिया है। किसी भी स्टार्टअप, कंपनी या सार्वजनिक हित के किसी काम के लिए फंड की व्यवस्था करने में यह तरीका दिनों-दिन चलन में आ रहा है। यहां तक कि राजनीतिक पार्टियां भी क्राउड फंडिंग का उपयोग कर रही हैं। तो आइए समझते हैं इस कॉन्सेप्ट को...
क्राउड फंडिंग क्या है: मान लीजिए कि आपके किसी इनोवेटिव आइडिया पर कोई कंपनी खोलना चाहते हैं, या फिर किसी जरूरतमंद मरीज को इलाज के लिए पैसों की जरूरत है तो सोशल मीडिया के माध्यम से ऑनलाइन मदद जुटाई जा सकती है। अगर लोग आपके कैंपेन या अपील से संतुष्ट हैं तो वे अपनी सुविधा के अनुसार पैसा डोनेट करते हैं। कई बार क्राउड फंडिंग से किसी कंपनी या प्रोजेक्ट के फायदे में शेयर का ऑफर भी किया जाता है। यह तरीका छोटे-छोटे बिजनेस और स्टार्टअप्स को improve होने में मदद करता है।
कितने प्रकार की होती है क्राउड फंडिंग: अगर हम Crowd funding के तरीकों की बात करें, तब भारत में बहुत से प्रकार के Crowd funding मौजूद हैं जैसे
1. Equity-based: इसमें इन्वेस्टर्स बड़ी मात्रा में पैसों को इन्वेस्ट करते हैं, ताकि वो startup में बड़ी हिस्सेदारी पा सकें। equity-based crowdfunding अक्सर कंपनी की ग्रोथ के लिए की जाती है। आपको बता दें कि SEBI यानि Securities and Exchange Board of India ने भारत में इस प्रकार की crowdfunding को अवैधानिक माना है।
2. Reward-based crowdfunding: जैसे की आप नाम से समझ सकते हैं Reward-based crowdfunding में इनवेस्टर को अपने इनवेस्टमेंट के बदले में कोई tangible प्रोडक्ट मिलता है। उदाहरण के लिए अगर आपकी एक डिजिटल वॉच का स्टार्टअप है। तब आपको अपने इनवेस्टर्स को अंत में डिजिटल वॉच के रूप में रिर्वाड देना पड़ता है।
3. डोनेशन बेस्ड क्राउड फंडिंग: इस प्रकार की क्राउड फंडिंग में दाताओं को अपने हिसाब से किसी noble cause के लिए दान कर सकते हैं। ये दान कितनी भी राशि का हो सकता है। अक्सर शिक्षा, बीमारी या किसी टैलेंटेड व्यक्ति की मदद के लिए इसे किया जाता है।
4. Debt-based crowdfunding: इसमें आप कंपनी के लिए सुरक्षा निधि में राशि जमा करते हैं, जिसे debt इंस्ट्रूमेंट भी कहा जाता है। इसमें आपका मकसद होता है कि अपना पैसा कंपनी को लोन के हिसाब से दो और बदले में कंपनी आपको ब्याज के साथ पैसे चुकाएगी।
5. Public-Private Partnership (PPP): इसका आधार equity-based model होता है, ये मुख्य रूप से भारत में सिर्फ प्रेक्टिस के लिए उपयोग की जाती है।
क्राउड फंडिंग की चुनौतियां: नए small-scale investors के लिए यह थोड़ा रिस्की होता है। यहां सामान्यत प्रतिष्ठा पर आंच आने का भी खतरा रहता है। अगर सही समय में अपने टारगेट पर न पहुंच सके तो ये इंट्ररेस्ट जनरेट करने में कामयाब नहीं होता है। जिसके चलते ये पब्लिक फेल्यर भी हो सकता है। इसमें एक रिस्क ये भी है कि अगर समान network of supporters के पास बार-बार जाया जाए तब कैंपेन को सही तरीके का सपोर्ट नहीं मिल पाता है जो कि बाद में एक बड़ा failure भी बन सकती है।