BHOPAL. द सूत्र.
भोजपुर विधानसभा सीट मोटे तौर पर भाजपाई चरित्र वाली रही है। यह सीट कुल 12 चुनावों में से भाजपा ने 9 बार जीती, जबकि कांग्रेस मात्र 3 बार जीत सकी है। इस सीट पर पटवा परिवार का काफी प्रभाव रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा यहां से 4 बार और उनके भतीजे सुरेन्द्र पटवा 3 बार विधानसभा चुनाव जीते हैं। इस सीट पर कुछ दिग्गज नेताओं का हारने का भी रिकॉर्ड है। उदाहरण के लिए कांग्रेस के असलम शेर खान, सुरेश पचौरी और अजय सिंह।
विधानसभा क्षेत्र: रायसेन जिले का दक्षिण पश्चिम इलाका। औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप, सुल्तानपुर तथा सतलापुर महत्वपूर्ण कस्बे हैं।
महिला मतदाता: 1 लाख 10 हजार 468
पुरुष मतदाता: 1 लाख 27 हजार 468,
कुल मतदाता: 2 लाख 37 हजार 572
साक्षरता का प्रतिशत:72.98 %
धार्मिक समीकरण: हिंदू बहुल क्षेत्र। ओबीसी की संख्या ज्यादा। ओबीसी में मीणा लोधी, लोध काफी संख्या में।
आर्थिक समीकरण: इस क्षेत्र में कृषि, उद्योग और पर्यटन अर्थ व्यवस्था के मुख्य आधार हैं। मंडीदीप बहुत बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है।
विधानसभा सीट पर मतदान का ट्रेंड कब और कितना (सर्वाधिक और न्यूनतम मतदान): सर्वाधिक 2018: 78.31%, न्यूनतम 1980: 54.84%
विधानसभा क्षेत्र का इतिहास:
भोजपुर विधानसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आई। यह शुरू से अनारक्षित रही है। पहले चुनाव में कांग्रेस के गुलाबचंद तामोट यहां से जीते थे। 1972 में तामोट दोबारा इसी सीट से जीते। उन्होंने जनसंघ के रमेश कुमार को पराजित किया। 1977 में यहां से जनता पार्टी के लक्ष्मीचंद परब को जीत हासिल हुई। जनता लहर में कांग्रेस के गुलाबचंद तामोट पराजित हुए। 1980 में कांग्रेस ने यहां से प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी असलम शेर खान को टिकट दिया, लेकिन वो भाजपा के शालिग्राम से हार गए। 1985 में भाजपा के दिग्गज नेता और मुख्य मंत्री रहे सुंदरलाल पटवा ने कांग्रेस के अकबर मोहम्मद खान को हराया। पटवा 1990 में फिर इसी सीट से लड़े और उन्होंने कांग्रेस नेता राजकुमार पटेल को हराया। पटवा तीसरी बार इसी सीट से 1993 में भी लड़े और उन्होंने कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह को हराया। पटवा ने 1998 में चौथी बार इस सीट से कांग्रेस के शालिग्राम वकील को हराया। 2003 के विस चुनाव में भोजपुर से पटवा के भतीजे सुरेन्द्र पटवा को टिकट मिला, लेकिन वो कांग्रेस के राजेश पटेल से हार गए, लेकिन सुरेन्द्र पटवा ने यही सीट भाजपा के टिकट पर 2013 और 2018 में भी जीती। 2018 में उन्होंने दिग्गज कांग्रेसी नेता सुरेश पचौरी को हराया।
विधानसभा क्षेत्र की खास पहचान: भोजपुर शिव मंदिर
विधानसभाा क्षेत्र का राजनीतिक मिजाज:
राजनीतिक रूप से यह भाजपा के असर वाला क्षेत्र ही रहा है। कांग्रेस पिछले 12 चुनावों में से केवल 3 बार ही जीत पाई है। भाजपा की इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ है।
विधानसभा क्षेत्र की बड़ी चुनावी उठा-पटक: इस क्षेत्र में बड़ी चुनावी उठा-पटक पहली बार 1993 में हुई थी, जब भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को हराने के लिए कांग्रेस ने पूर्व मुख्यपमंत्री और अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह को चुनाव में उतारा था। यह चुनाव दो बड़े नेताओं की अग्निपरीक्षा थी। इसमें अजय सिंह 29 हजार 168 वोटों से हारे। दोनों पार्टियों ने पूरी ताकत झौंक दी थी। हालांकि व्यक्तिगत तौर पर पटवा और अर्जुन सिंह के अच्छे सम्बन्ध थे। दूसरी बड़ी उठा पटक 2018 के विस चुनाव में हुई, जब कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी को यहां से टिकट दिया। भाजपा ने सुरेन्द्र पटवा को ही प्रत्याशी बनाया था। उस वक्त पटवा आर्थिक गड़बड़ियों के कई आरोपों से घिरे थे। इससे क्षेत्र में उनकी छवि पर भी असर पड़ा था। इसके बाद भी सुरेन्द्र पटवा 30 हजार से अधिक वोटों से जीत गए। सुरेश पचौरी की हार का मुख्य कारण क्षेत्र के लोगों से उनका जीवंत संपर्क न होना रहा। साथ ही पार्टी में भी भीतरघात हुआ। लोग उन्हें आयातित नेता मानते रहे।
2003 से 2018 तक के विधानसभा चुनाव में कौन जीता-कौन हारा: एक बार कांग्रेस व तीन बार भाजपा जीती।
स्थानीय मुद्दे: रोजगार, पर्यटन, ग्रामीण विकास व शिक्षा के अग्रणी रहने के वादों पर अमल नहीं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल व सड़कों की बदहाली।
पिछले चुनाव (2018) में समीकरण: भाजपा के पक्ष में भारी ध्रुवीकरण। कांग्रेस के कर्जमाफी वादे का इस क्षेत्र में खास असर नहीं हुआ। उल्टे रिकॉर्ड मतदान में सुरेन्द्र पटवा ने कांग्रेस के सुरेश पचौरी को हरा दिया।