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छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के घने जंगलों में सुरक्षा बलों ने मंगलवार को एक बड़ी कामयाबी हासिल की। मुठभेड़ में सीपीआई-माओवादी के शीर्ष नेता और संगठन के महासचिव बासव राजू उर्फ नंबाला केशव राव उर्फ बीआर दद्दा मारा गया। नक्सल आंदोलन की रीढ़ माने जाने वाले इस हार्डकोर माओवादी की सुरक्षा में तैनात कंपनी नंबर-सात का भी लगभग पूरी तरह सफाया हो गया। यह 30 सालों में पहली बार है जब सुरक्षा बलों ने किसी पोलित ब्यूरो सदस्य को मार गिराने में सफलता पाई है।
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कंपनी नंबर-सात का अंत, लेकिन एक सरगना बचा
कंपनी नंबर-सात, जो बासव की सुरक्षा में तैनात थी, लगभग पूरी तरह खत्म हो गई। हालांकि, गढ़चिरौली का प्रभारी सचिव पटकल स्वामी इस मुठभेड़ में बच निकलने में कामयाब रहा। वह भी हिंसक गतिविधियों का मास्टरमाइंड माना जाता है।
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नक्सलियों की गुरिल्ला रणनीति
माओवादी आमतौर पर गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाते हैं। वे खुले युद्ध से बचते हैं और पीछे से हमला करने में माहिर हैं। उनकी एंबुस रणनीति सुरक्षा बलों के लिए चुनौती रही है, लेकिन इस बार पुलिस ने उनकी ही रणनीति का इस्तेमाल कर उन्हें घेर लिया।
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सख्त सुरक्षा घेरा फिर भी नहीं बचा
नक्सलियों का कुख्यात चेहरा बासव की सुरक्षा व्यवस्था बेहद सख्त थी। बासव की सुरक्षा व्यवस्था पोलित ब्यूरो स्तर के नेताओं की तरह थी। उसकी सुरक्षा में एके-47 से लैस प्रशिक्षित 40 नक्सली तैनात रहते थे। इतना ही उसके आसपास तीन किलोमीटर तक का इलाका साफ रखा जाता था। साथ ही जनताना सरकार भी 24 घंटे सक्रिय रहती थी। इसके बावजूद सुरक्षा बलों ने सटीक रणनीति के साथ उसे घेर लिया।
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19 मई से शुरू हुई थी घेराबंदी
19 मई को खुफिया जानकारी मिली कि बासव अबूझमाड़ के जंगलों में छिपा है। इसके बाद नारायणपुर, कांकेर और दंतेवाड़ा जिले की पुलिस के साथ केंद्रीय सुरक्षा बलों ने संयुक्त ऑपरेशन शुरू किया। 20 मई की शाम तक इलाके को चारों ओर से घेर लिया गया। 21 मई की सुबह तड़के सुरक्षा बलों ने फायरिंग शुरू की। माओवादियों को संभलने का मौका नहीं मिला और मुठभेड़ में बासव राजू समेत 27 नक्सली ढेर हो गए। इस ऑपरेशन में डीआरजी का एक जवान भी बलिदान हुआ।
नक्सलियों का क्रूर चेहरा था बासव राजू
आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले का रहने वाला 70 वर्षीय बासव राजू माओवादी संगठन का महासचिव, केंद्रीय सैन्य आयोग का प्रमुख, पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति का सदस्य था। बासव ने बीटेक किया था। उसे सटिक रणनीतिकार, मगर क्रूर निर्णयों के लिए जाना जाता था। वह 1970 में माओवादी संगठन से जुड़ा तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। कई हिंसक वारदातों में उसका हाथ रहा। उसकी इसी काबलियत को देखते हुए 2018-19 में शीर्ष पद पर पदोन्नति दी गई थी ताकि कमजोर पड़ रहे नक्सल आंदोलन को फिर से गति दी जा सके।
सुरक्षा बलों की ऐतिहासिक जीत
यह मुठभेड़ नक्सल विरोधी अभियानों में मील का पत्थर साबित हुई है। बासव राजू का खात्मा और उसकी सुरक्षा में तैनात कंपनी का सफाया नक्सल आंदोलन को बड़ा झटका देगा। यह ऑपरेशन न केवल सुरक्षा बलों की रणनीतिक दक्षता को दर्शाता है, बल्कि नक्सलियों के लिए एक कड़ा संदेश भी है कि अब कोई भी उनके लिए सुरक्षित नहीं है।
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