दो महीने में चालान पेश नहीं कर पाए 'काबिल' अफसर, क्या अब लोकायुक्त का भी नाम बदलेगी सरकार?

मध्‍य प्रदेश में सौरभ शर्मा केस में लोकायुक्त की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। 100 करोड़ रुपए की संपत्ति, 52 किलो सोना और 11 करोड़ रुपए नकद जब्त किए गए लेकिन...

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Ravi Kant Dixit
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गर्मी के इस मौसम में मध्‍य प्रदेश की सियासत तप रही है। इसकी वजह अंग्रेजों और मुगलों की बची-खुची पहचान मिटाने की मुहिम है। सीएम राइज स्कूल अब सांदीपनि विद्यालय कहलाएंगे। ग्राम मौलाना, गजनीखेड़ी और जहांगीरपुर जैसे नाम इतिहास बन चुके हैं। मतलब, सीएम राइज स्कूल अंग्रेजों की याद दिलाते हैं और मौलाना जैसे गांव के नाम मुगल शासन की। अब यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार जांच एजेंसी लोकायुक्त का नाम भी बदलेगी? 

आप सोच रहे होंगे कि यहां लोकायुक्त कहां से आ गई? ...तो इसकी सीधी सी वजह है। मध्यप्रदेश के सबसे चर्चित सौरभ शर्मा केस में सब कुछ साफ नजर आने के बाद भी लोकायुक्त 60 दिन यानी पूरे दो महीने में कोर्ट में चालान तक पेश नहीं कर पाई। इसका नतीजा यह हुआ कि परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा, उसके साथ चेतन सिं​ह गौर और शरद जायसवाल को लोकायुक्त की विशेष अदालत ने जमानत दे दी।

 ये स्थिति तब है, जब ईडी सौरभ की 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति अटैच कर चुकी है। जांच एजेंसियों ने यह भी मान लिया है कि इनोवा कार से जो सोना मिला था, वह भी सौरभ का ही था। हालांकि सोने के वजन को लेकर अब भी गफलत है। मीडिया का एक वर्ग इसे 52 किलो बता रहा है तो एक धड़े की नजर में सोने का वजन 54 किलो था। खैर, अब ये किसी के लिए जांच का विषय नहीं है। 

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जमानत तो मिली पर बाहर आना मुमकिन नहीं 

1 अप्रैल 2025 को सौरभ शर्मा के वकील राकेश पाराशर और दीपेश जोशी ने विशेष अदालत में तर्क दिया कि लोकायुक्त ने गिरफ्तारी के 60 दिन बाद चार्जशीट दाखिल नहीं की। यह जमानत का आधार बन सकता है। विशेष न्यायाधीश राम प्रताप मिश्र ने यह दलील मान ली। इधर, सब कुछ साफ होने के बाद भी लोकायुक्त एसपी दुर्गेश राठौर कहते हैं कि साक्ष्यों के पूरे परीक्षण के बाद अभियोजन स्वीकृति मिलने पर चार्जशीट पेश की जाएगी। लोकायुक्त के डीजी योगेश देशमुख का तर्क है कि यह अनुपातहीन संपत्ति का केस है। ऐसे मामलों में काफी तथ्य और सबूतों की जरूरत होती है। इन्हें जुटाने में वक्त लगता है। अब यहां सवाल यह है कि और कितना परीक्षण करना चाहती है लोकायुक्त। हालांकि, तीनों आरोपियों की रिहाई अभी मुमकिन नहीं है, क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) कोर्ट में मामला चल रहा है। यहां 11 अप्रैल को जमानत आवेदन पर सुनवाई होगी, तब तक तीनों आरोपी न्यायिक हिरासत में सेंट्रल जेल में रहेंगे। 

सरकार की मंशा पर उठे बड़े सवाल 

सौरभ और उसके साथियों को जमानत मिलने के मामले में राजनीति शुरू हो गई है। मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस के और भी नेताओं ने सरकार को आड़े हाथों लिया। जीतू ने कहा, लोकायुक्त की ओर से चालान पेश न किया जाना भाजपा सरकार की मंशा को उजागर करता है। सीधा संकेत है कि भ्रष्टाचार के तार केवल कुछ अधिकारियों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि संगठित नेटवर्क के रूप में शीर्ष तक फैला हुआ है। इससे भाजपा की चाल चरित्र चेहरा उजागर हुआ। इसके जवाब में भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने कहा कि कोर्ट के आदेश को अप्रैल फूल बताकर आप सीधे-सीधे न्यायालय की अवमानना कर रहे हैं। हमारी ही सरकार ने इस भ्रष्टाचार की जड़ें खोद कर गिरफ्तारी की... पूरा विश्वास है कि भ्रष्टाचार के दोषियों को सजा माननीय न्यायपालिका से जरूर मिलेगी।  

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इस तरह समझिए लोकायुक्त ने क्या क्या गलतियां की 

  • 19 दिसंबर 2024 को छापेमारी के दौरान सौरभ के एक दूसरे घर और शरद जायसवाल के ठिकानों पर कार्रवाई नहीं की गई।
  • आयकर विभाग ने 52 किलो सोना और 11 करोड़ नकद एक इनोवा कार से बरामद किया। यह कार छापे के वक्त सौरभ के घर के पास थी।
  • सौरभ और उसकी पत्नी दिव्या 40 दिन तक फरार रहे। 27 जनवरी को सौरभ ने सरेंडर का आवेदन दिया, लेकिन कोर्ट से चला गया।
  • 28 जनवरी को सौरभ ने कोर्ट में सरेंडर किया। इससे एक दिन पहले कोर्ट में सरेंडर का आवेदन दिया। लोकायुक्त को इसकी भनक नहीं लगी।
  • ईडी के वकीलों ने कोर्ट में कहा कि उनके पास चार्जशीट दाखिल करने की समयसीमा 11 अप्रैल तक है। तय समय में इसे पेश कर दिया जाएगा।
  • लोकायुक्त पुलिस अभी तक सोने और नकदी के असली मालिक का पता नहीं लगा सकी। जांच में भी खामी सामने आती रही। लोकायुक्त ने 7.98 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की थी, जिसमें 234 किलो चांदी भी शामिल थी।

चालान क्या होता है और इसका महत्व?

विधि विशेषज्ञ कहते हैं कि किसी भी अपराध की जांच पूरी होने के बाद संबंधित जांच एजेंसी (जैसे लोकायुक्त, पुलिस, CBI, ED आदि) अदालत में औपचारिक दस्तावेज पेश करती है, इसे ही चालान यानी Charge Sheet कहा जाता है। यह दस्तावेज अदालत को यह बताने के लिए पेश किया जाता है कि जांच एजेंसी ने अपराध की पूरी जांच कर ली है और इस अपराध में किस व्यक्ति को आरोपी माना गया है। चार्जशीट दाखिल होने के बाद अदालत उस पर संज्ञान लेती है और आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने की प्रक्रिया शुरू होती है। चार्जशीट में जांच एजेंसी द्वारा जुटाए गए सभी सबूत, गवाहों के बयान, जब्त किए गए सामान और अन्य दस्तावेज होते हैं, जो आरोपी के खिलाफ मामला साबित करने में मददगार होते हैं। चालान ही यह तय करता है कि आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाएगा या न्यायिक हिरासत यानी Judicial Custody में रखा जाएगा। सौरभ के केस में यही हुआ। लोकायुक्त ने दो महीने में भी चालान पेश नहीं किया और इसी मुद्दे को उसके वकीलों ने आधार बनाया। जिस पर कोर्ट ने उसे जमानत दे दी। 

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जानिए, कौन सी एजेंसी क्या जांच कर रही?

परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा केस में ईडी मनी ट्रेल और प्रॉपर्टी के दस्तावेज, तो इनकम टैक्स विभाग सौरभ के दोस्त चेतन सिंह गौर की गाड़ी से मिले 54 किलो सोना और 11 करोड़ रुपए की जांच कर रही है। लोकायुक्त आय से ज्यादा संपत्ति की जांच तो डीआरआई इस बात की जांच कर रही है कि जो सोना मिला है, वो लीगल तरीके से लिया गया है या नहीं? काली कमाई को कॉलोनी बनाने में खपाए जाने का कनेक्शन भी जांच एजेंसियों को मिला है। अब ग्वालियर पुलिस ने सौरभ और उसकी मां उमा शर्मा पर धोखाधड़ी व अन्य धाराओं में मामला दर्ज किया है।

इन एजेंसियों के पास जांच का जिम्मा

1. डीआरआई: क्या यह सोना काले धन का हिस्सा था?
2. इनकम टैक्स: क्या यह अघोषित संपत्ति थी?
3. ईडी: इस घोटाले में कौन-कौन शामिल था?
4. लोकायुक्त: सौरभ की नौकरी और भ्रष्टाचार के कनेक्शन की जांच।
5. ग्वालियर पुलिस: अनुकंपा नियुक्ति में जालसाजी का मामला।

एडीजी जयदीप प्रसाद की क्यों हुई विदाई?

 इधर, सौरभ शर्मा के केस की छानबीन के बीच ही 23 मार्च को सरकार ने लोकायुक्त एडीजी जयदीप प्रसाद को बदल दिया था। अब एडीजी योगेश देशमुख को लोकायुक्त की कमान सौंपी गई है। माना जा रहा है कि सौरभ शर्मा के केस में शुरुआती जो लापरवाहियां हुईं, उसी के चलते जयदीप प्रसाद की विदाई की गई थी। 

परिवहन मंत्री ने कार्रवाई के लिए कहा था

हाल ही में विधानसभा के बजट सत्र के बीच कांग्रेस परिवहन घोटाले का मुद्दा उठाया था। 20 मार्च 2025 को परिवहन मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने इस पर प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था कि पहले से सक्षम एजेंसियां मामले की जांच कर रही हैं। मुझे लगता है कि जब तक जांच का निष्कर्ष नहीं आ जाता, उसमें अलग से व्यवधान उत्पन्न करना उचित नहीं है। 

कार में मिला था 11 करोड़ कैश और 52 किलो गोल्ड

गौरतलब है कि सौरभ शर्मा दिसंबर 2024 में तब चर्चा में आया था, जब लोकायुक्त, ईडी और आयकर विभाग ने उसके ठिकानों पर छापामार कार्रवाई की थी। इसी दौरान भोपाल के मेंडोरी में इनोवा कार से करोड़ों रुपए और सोना जब्त किया गया था। इसका लिंक भी सौरभ से जुड़ा था। इसके बाद सौरभ और उसके सहयोगियों की बेशुमार संपत्ति सामने आई थी।

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ग्वालियर में झूठे शपथ पत्र पर हुई नियुक्ति की शिकायत

आरटीआई एक्टिविस्ट संकेत साहू का दावा है कि सौरभ ने अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन में परिवार के सदस्यों के कॉलम में भाई की जानकारी छिपाई थी। सौरभ ने नहीं बताया था कि उसका बड़ा भाई सचिन शर्मा छत्तीसगढ़ में सरकारी नौकरी में है। सौरभ की मां उमा शर्मा ने आवेदन में सहमति कॉलम पर हस्ताक्षर किए थे। ग्वालियर के तत्कालीन CMHO अनूप कमठान ने इस आवेदन को वेरिफाई किया था।  

जब राजनीति में आया उबाल

सौरभ शर्मा के केस में राजनीति भी कम नहीं हुई। पहले एक मंत्री का नाम जमकर उछला। इसके बाद विपक्ष ने पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह की घेराबंदी की। सौरभ शर्मा की परिवहन विभाग में नियुक्ति के लिए नोटशीट लिखने को लेकर तत्कालीन परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने विधानसभा में ये माना कि सौरभ शर्मा की नियुक्ति गलत हुई थी। उन्होंने यह भी कहा कि नियम के अनुसार सौरभ शर्मा की नियुक्ति हो ही नहीं सकती थी।

द सूत्र: त्वरित टिप्पणी 

अंग्रेजी हुकूमत और मुगल एम्पायर के समय के नाम तो बदले जा रहे हैं, लेकिन जो अफसर उसकी मानसिकता के साथ काम कर रहे हैं, सरकार क्या उन्हें बदलेगी? इसका जवाब न ही है। लोकायुक्त चिल्लर पकड़ने में तो फुर्ती दिखाती है, लेकिन जब सामने 100 करोड़ क्लब का खिलाड़ी आया तो अफसर 60 दिन में जांच तक पूरी नहीं कर पाए। मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी घोटालेबाजी में लोकायुक्त ने ऐसी ऐतिहासिक लापरवाही की कि भ्रष्टाचारियों को सीधा गोल्डन टिकट मिल गया। सौरभ शर्मा, चेतन सिंह और शरद जायसवाल... ये वो नाम हैं जिनका खेल पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय है। 100 करोड़ की संपत्ति, 52 किलो सोना, 11 करोड़ कैश… लेकिन 60 दिन बाद भी चालान नहीं। इसका क्या मतलब निकाला जाए? छापे के दौरान 52 किलो सोना मिला था, 11 करोड़ कैश बरामद हुआ। सौरभ शर्मा और उसकी पत्नी 40 दिन तक फरार रहे, फिर भी लोकायुक्त चैन की नींद सोती रही। आखिर लोकायुक्त को कौन-सा साक्ष्य परीक्षण करना था? क्या वो चांदी के सिक्कों पर सौरभ की फोटो ढूंढ रहे थे? या फिर सोने का DNA टेस्ट करवा रहे थे। ईडी (ED) ने सौरभ शर्मा की 100 करोड़ की संपत्ति अटैच कर दी, इनोवा कार से जो सोना मिला था वो भी उसी का निकला, लेकिन लोकायुक्त ने 60 दिन में चालान तक पेश नहीं किया। क्या ये किसी ऊपर वाले का खेल था? आखिर ये फाइलें क्यों लटकाईं गईं? क्या किसी बड़े नेता को बचाने की तैयारी थी?

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