मध्य प्रदेश में वन विभाग का सौतेला व्यवहार अब गंभीर समस्या बन गया है, जिसमें राज्य के डेढ़ लाख लोग परेशान हैं। प्रदेश में 50 हजार हेक्टेयर से ज्यादा निजी भूमि वन विभाग के रिकार्ड में शामिल कर ली गई है। जिससे लोग अपनी जमीन का वैध और व्यावसायिक उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। वहीं, इन जमीनों को वन विभाग के रिकॉर्ड से बाहर करने में लोगों की मेहनत और समय बर्बाद हो गया है। पावरफुल परिवारों की जमीनों पर वन विभाग की कृपा बरकरार है।
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पावरफुल परिवारों को मिली राहत
जब कुछ प्रभावशाली परिवारों की जमीनों की बात आई, तो वन विभाग ने त्वरित कार्रवाई करते हुए उनकी भूमि को रिकार्ड से बाहर कर दिया। उदाहरण के तौर पर, पूर्व सीएस वीरा राणा के पति, पूर्व आईपीएस संजय राणा और पूर्व सीएस एवी सिंह की जमीनों को वन विभाग ने रिकार्ड से बाहर कर दिया। ये परिवार अब अपनी जमीन का वैध उपयोग कर रहे हैं, जबकि आम लोग अपनी जमीनों को वापस पाने के लिए अदालतों के चक्कर काट रहे हैं।
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प्रशासन की संवेदनहीनता और वन विभाग की कार्रवाई
सीहोर के इच्छावर में कुछ निजी जमीनों को वन विभाग के रिकार्ड में शामिल किया गया था। उदाहरण के लिए, संजय राणा और एवी सिंह की जमीनों को 6 मई 2022 को नोटिस जारी कर यह कहा गया था कि इनकी जमीन वन खंड में शामिल है और यहां कोई गैर वानिकी कार्य या निर्माण नहीं किया जा सकता। ऐसे मामलों में प्रशासन की असंवेदनशीलता सामने आ रही है, क्योंकि ये भूमि पहले ही कानूनी रूप से खरीदी गई थीं, फिर भी इन्हें वन भूमि मान लिया गया।
- पावर का खेल- प्रभावशाली लोगों की जमीन वन क्षेत्रों से बाहर, आम लोगों की पीढ़ियां खप रही।
- मध्य प्रदेश में डेढ़ लाख लोगों की 50 हजार हेक्टेयर निजी भूमि वन विभाग के रिकार्ड में।
- व्यावसायिक उपयोग व निर्माण करने से लोगों को रोक रहे वन अफसर।
- हकीकत- वन विभाग के रिकार्ड से बाहर निकली जमीन तो मध्य प्रदेश कम हो जाएंगे जंगल।
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सरकार और वन विभाग की सफाई
विधानसभा सत्र के दौरान, वन राज्यमंत्री दिलीप अहिरवार ने इस बात को स्वीकार किया कि शहडोल वन वृत्त में 4249.728 हेक्टेयर निजी जमीन वन विभाग के रिकार्ड में शामिल है। इसके अलावा, पूर्व वन मंत्री विजय शाह ने भी इस बात की पुष्टि की कि कुछ मामलों में वन विभाग की कब्जे वाली जमीन को वापस दिलवाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी, लेकिन इससे संबंधित कार्रवाई बेहद धीमी चल रही है।
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आम लोगों की जमीनों वन भूमि में शामिल
विभाग ने 60 साल पहले जब सीमा निर्धारण किया था, तब उन जमीनों को वन खंड में शामिल कर लिया था, जिन पर लोगों का कानूनी हक था। इस प्रक्रिया में कई गड़बड़ियां हुईं और तब से हजारों हेक्टेयर जमीन वन विभाग के कब्जे में चली गई, जबकि लोग इसे अपनी निजी संपत्ति मानते रहे। अब जब लोग अपनी जमीनों को वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो वन विभाग उनके आवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है।
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